अकबर की राजपूत निति
राजपूतो की राणा सांगा , मालदेव , राव चन्द्रसेन एवं राणा प्रताप कालीन संघर्ष भावना ने आगे चलकर नया । लिया । इस मोड़ के अनेक कारण थे । सर्वप्रथम राजस्थान में ऐसा कोई नरेश नहीं बचा था जो अकबर की बड़ी । सत्तावादी नीति का मुकाबला कर सके । निर्बल और निकम्मे शासकों की आपसी फूट और अयोग्यता के दौर ने र का संघर्ष की भावना को शिथिल बना दिया । 1562 ई . में राव मालदेव की मृत्यु अकबर के लिए वरदान सिद्ध हुई है । चन्द्रसेन एवं राव उदयसिंह में वैमनस्य के कारण अकबर को मारवाड़ की राजनीति में हस्तक्षेप करने का मौका मिला । इन । तरह आम्बेर के कछवाहों में आंतरिक कलह के कारण आम्बेर के भारमल ने अपनी लड़की हरकाबाई का विवाह । के साथ 1562 ई . में किया ।
इस वैवाहिक संबंध में मुगल राजपूत संबंधों में एक नया मोड़ ला दिया । अकबर ने 1567 । । में चित्तौड़गढ़ के राणा उदयसिंह को , 1569 ई . में रणथम्भौर के सुर्जन हाड़ा को परास्त कर समस्त राजपूताना को भय । कर दिया । इसी क्रम में 1570 ई . में अकबर ने ' नागौर दरबार आयोजित किया । जिसमें मेवाड़ व उसकी अन्य रियासतों को छोड़कर लगभग सम्पूर्ण राजपूताना ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली तथा अधिकांश राजपूत रु मुगलों से वैवाहिक संबंध में बंध गए । अकबर का अजमेर आगमन : अकबर अपने शासनकाल में अजमेर कई बार आया । 1562 ई . अजमेर कच एवं आम्बेर की हरकाबाई से सांभर में विवाह । 1567 ई . में अकबर ने अजमेर दरगाह को 18 गाँव प्रदान किए उड़ सांभर झील से होने वाली आय से 1 प्रतिशत आय प्रतिवर्ष देना निश्चित किया ।
1568 ई . में चित्तौड़ के पतन के पुनः आगमन । 1570 ई . में सलीम के जन्म ( 1569 ई . ) के बाद आगरा से पैदल यात्रा , 1570 ई . में पुनः आगमन , अन दुर्ग की मरम्मत करवाई तथा अकबरी महल बनवाया , दरगाह में अकबरी मस्जिद बनवाई , अकबरी दुर्ग बनवाया । 157 ! में अजमेर में पड़ाव तथा हल्दीघाटी युद्ध । 1579 में अजमेर की अंतिम यात्रा , अजमेर को प्रमुख मुस्लिम केन्द्र बना दिर वैवाहिक संबंध : जिस वैवाहिक संबंध की नीति का बड़े पैमाने पर आरम्भ अकबर ने किया था , उसके पर बड़े महत्त्वपूर्ण निकले । अकबर ने सर्वप्रथम भारमल की पुत्री हरकाबाई से 1562 ई . में विवाह किया , जिससे ( जहांगीर ) पैदा हुआ । अकबर ने इसे ' मरियम उन्जमानी ' का खिताब बख्शा । इस निकट संबंध ने आमेर के राजा । । का महत्त्व मुगल दरबार में तथा राजस्थान में बढ़ा दिया । मोटा राजा उदयसिंह ( मारवाड़ ) ने भी सम्मान और प्रतिष्ठ करने के लिए अपनी पुत्री मानीयाई ( जोधाबाई , जगत गुसाई ) का विवाह सलीम से किया जिससे शहजादा बुरेन पैदा हुआ ।
आमेर के भगवन्तदास ने अपनी पुत्री मानबाई का विवाह सलीम से किया जिससे शहजादा खुसी है बीकानेर नरेश रायसिंह की पुत्री का संबंध भी जहाँगीर से हुआ । भाटिया के विवाह संबंध भी जैसलमेर को देना । कारण बने । बाद में जोधपुर के शासक अजीतसिंह ने भयवश अपनी पुत्री इन्द्रकुवरी का विवाह 1714 ई . में मुरास । फर्रुखसियर से किया । यह अंतिम राजपूत राजकुमारी थी जो मुगल हरम में गई ।अकबर ने मुगल - राजपूत सम्बन्धों को जो दुनियाद रखी थी वह कमोवेश आखिर आर . पी . त्रिपाठी के अनुसार अकबर शाही संघ के प्रति राजपूतों की केवल निष्ठा चाहता था । इस हो , इन - हर दो अपरेक थी या शासकों को सिराज की एक निश्चित रकम अदा करनी होगी । अपनी विदेश नीति का निर्धारण , आप शुद्ध और सौप करने का अधिकार नहीं होगा लेकिन उनके आंतरिक हम में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा ।
अपकता पड़ने पर वे निश्चित संख्या में केन्द्र को सशक्त सैन्य दल अपलव्य करायेंगे । स्वयं को प्राज्य का अभिन्न अंग समझना होगा न कि व्यक्तिगत इकाई । क मोटे तौर पर अकबर ने राजपूतों के साथ जो संबंध निर्धारित किए उसमें निम्नलिखित विन्दु धे त सुलह - ए - कुल ( सभी के साथ शांति एवं सुसह ) पर आधारित थी । सुलह न किए जाने वाले शासक को श्ति के बल पर जी , जैसे - मेगड़ , रणथम्भौर आदि । गा । शाम को उनको ' वतन जागीर दी गई । उसको आंतरिक मामलों में पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की गई थी । शहरी आक्रमों में पूर्ण सुरक्षा की गारण्टी दी गई । प्राप्त संचालन एवं युद्ध अभियानों में सम्मिलित किया एवं योग्यता अनुरूप उन्हें ' मनसख ' प्रदान किया । * प्रणा ' शुरू की । राज्य के नए उत्तराधिकारी की वैधता ' टीका प्रया ' द्वारा की जाती थी । अप कोई राजपूत तक अपना उत्तराधिकारी चुनता था तो मुगल सम्राट उसे ( नवनियुक्त ) ' टोका ' सगाता था ,
तय उसे मान्यता सभी राजपूत शासकों की टकसालों की जगह मुगली प्रभाव की मुद्रा शुरू की गई । • सभी राजपूत राज्य अजमेर सूर्य के अन्तर्गत रखे गए । | अजमेर सवे का निर्माण : अकबर ने जब अपने विस्तात सामान्य के विभिन्न यो का मरी हग से संगठन किया । । म प्रदेश का ( राजस्थान का ) कोई प्रान्तीय नाम नहीं था जैसे माला , गुजरात : आदि । अत : यह प्रति अपनी राजपानी । है उसी के प्रति हे राम से ' अजमेर माया ' कहलाया । मह का गवर्नर मुगल सम्राट द्वारा नियुक्त किया ITI पाता शायी होता था । राजपूताना के सभी राजपूत शासक अजमेर सूबेदार के अधीन रहते थे । कुछ रियासतों को गुजरात सूखे के अन्तर्गत रखा गया । | अशा ने प्रान्तों ( सु ) को सरकारों ( जिलों ) में बांटा था ।
उसने अजमेर सूर्य को अजमेर , दिौड , शम्भौर , परा , गौर , बीकानेर और सिरोही नामक सरकारों में बांटा था । औरंगजेब ने जैसलमेर को अलग सरकार बनाया । कारों को परगनों ( तहसीलों ) में बांटा गया था । मुगलों में राजस्थान को 197 परगनों में विभक्त किया था । । मुली ने भूमि नाम एवं भू - राजस्व लगभग उसी प्रकार किया जिस प्रकार अपनी खालसा भूमि में किया । यहाँ तक एवं उपज के रूप में राजस्व वसूला जाता था । उपज वसूली में लाटा , कता आदि का प्रचलन दिखाई देता है । गर मिली में जकात एवं राहदारी भी दिखाई देता है । सभी प्रकार का टैक्स अजमेर सूर्य में जमा होता था ।
आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप ( टीका प्रथा का दुरुपयोग : मुगलों ने यह निश्चित किया था कि किसी भी 7 शक के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नही किया जाएगा लेकिन में ऐसा कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देना । में जिससे कि वे हस्तक्षेप न कर सह । गिलों ने उत्तराधिकार के संबंध में ज्येष्ठाधिकार एवं वागतता को मान्यता किन इसकी उल्लघंन भी किया । कभी - कभी बादशाह की पसंद का व्यक्ति गद्दी पर बैठा , जिससे यह सिद्ध किया । । सपा बादशा में निहित है । सिसे राजपूतों की चेतना अब मुगल शासक को अनुकम्मा प्राण करने तक म र गई । कुछ हस्तक्षेप के मामले से प्रकार थे । सिंह और सगर का मेवाड से नाराज होकर अकबर के दरबार में जाना मुगल सत्ता के लिए हितकारी रामरा गया । । मरद के चन्द्रसेन और उदयसिंह के परेल इगहों को अकबर ने अपने प्रभाव पर्दन का अच्छा साधन माना ।
इस वैवाहिक संबंध में मुगल राजपूत संबंधों में एक नया मोड़ ला दिया । अकबर ने 1567 । । में चित्तौड़गढ़ के राणा उदयसिंह को , 1569 ई . में रणथम्भौर के सुर्जन हाड़ा को परास्त कर समस्त राजपूताना को भय । कर दिया । इसी क्रम में 1570 ई . में अकबर ने ' नागौर दरबार आयोजित किया । जिसमें मेवाड़ व उसकी अन्य रियासतों को छोड़कर लगभग सम्पूर्ण राजपूताना ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली तथा अधिकांश राजपूत रु मुगलों से वैवाहिक संबंध में बंध गए । अकबर का अजमेर आगमन : अकबर अपने शासनकाल में अजमेर कई बार आया । 1562 ई . अजमेर कच एवं आम्बेर की हरकाबाई से सांभर में विवाह । 1567 ई . में अकबर ने अजमेर दरगाह को 18 गाँव प्रदान किए उड़ सांभर झील से होने वाली आय से 1 प्रतिशत आय प्रतिवर्ष देना निश्चित किया ।
1568 ई . में चित्तौड़ के पतन के पुनः आगमन । 1570 ई . में सलीम के जन्म ( 1569 ई . ) के बाद आगरा से पैदल यात्रा , 1570 ई . में पुनः आगमन , अन दुर्ग की मरम्मत करवाई तथा अकबरी महल बनवाया , दरगाह में अकबरी मस्जिद बनवाई , अकबरी दुर्ग बनवाया । 157 ! में अजमेर में पड़ाव तथा हल्दीघाटी युद्ध । 1579 में अजमेर की अंतिम यात्रा , अजमेर को प्रमुख मुस्लिम केन्द्र बना दिर वैवाहिक संबंध : जिस वैवाहिक संबंध की नीति का बड़े पैमाने पर आरम्भ अकबर ने किया था , उसके पर बड़े महत्त्वपूर्ण निकले । अकबर ने सर्वप्रथम भारमल की पुत्री हरकाबाई से 1562 ई . में विवाह किया , जिससे ( जहांगीर ) पैदा हुआ । अकबर ने इसे ' मरियम उन्जमानी ' का खिताब बख्शा । इस निकट संबंध ने आमेर के राजा । । का महत्त्व मुगल दरबार में तथा राजस्थान में बढ़ा दिया । मोटा राजा उदयसिंह ( मारवाड़ ) ने भी सम्मान और प्रतिष्ठ करने के लिए अपनी पुत्री मानीयाई ( जोधाबाई , जगत गुसाई ) का विवाह सलीम से किया जिससे शहजादा बुरेन पैदा हुआ ।
आमेर के भगवन्तदास ने अपनी पुत्री मानबाई का विवाह सलीम से किया जिससे शहजादा खुसी है बीकानेर नरेश रायसिंह की पुत्री का संबंध भी जहाँगीर से हुआ । भाटिया के विवाह संबंध भी जैसलमेर को देना । कारण बने । बाद में जोधपुर के शासक अजीतसिंह ने भयवश अपनी पुत्री इन्द्रकुवरी का विवाह 1714 ई . में मुरास । फर्रुखसियर से किया । यह अंतिम राजपूत राजकुमारी थी जो मुगल हरम में गई ।अकबर ने मुगल - राजपूत सम्बन्धों को जो दुनियाद रखी थी वह कमोवेश आखिर आर . पी . त्रिपाठी के अनुसार अकबर शाही संघ के प्रति राजपूतों की केवल निष्ठा चाहता था । इस हो , इन - हर दो अपरेक थी या शासकों को सिराज की एक निश्चित रकम अदा करनी होगी । अपनी विदेश नीति का निर्धारण , आप शुद्ध और सौप करने का अधिकार नहीं होगा लेकिन उनके आंतरिक हम में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा ।
अपकता पड़ने पर वे निश्चित संख्या में केन्द्र को सशक्त सैन्य दल अपलव्य करायेंगे । स्वयं को प्राज्य का अभिन्न अंग समझना होगा न कि व्यक्तिगत इकाई । क मोटे तौर पर अकबर ने राजपूतों के साथ जो संबंध निर्धारित किए उसमें निम्नलिखित विन्दु धे त सुलह - ए - कुल ( सभी के साथ शांति एवं सुसह ) पर आधारित थी । सुलह न किए जाने वाले शासक को श्ति के बल पर जी , जैसे - मेगड़ , रणथम्भौर आदि । गा । शाम को उनको ' वतन जागीर दी गई । उसको आंतरिक मामलों में पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की गई थी । शहरी आक्रमों में पूर्ण सुरक्षा की गारण्टी दी गई । प्राप्त संचालन एवं युद्ध अभियानों में सम्मिलित किया एवं योग्यता अनुरूप उन्हें ' मनसख ' प्रदान किया । * प्रणा ' शुरू की । राज्य के नए उत्तराधिकारी की वैधता ' टीका प्रया ' द्वारा की जाती थी । अप कोई राजपूत तक अपना उत्तराधिकारी चुनता था तो मुगल सम्राट उसे ( नवनियुक्त ) ' टोका ' सगाता था ,
तय उसे मान्यता सभी राजपूत शासकों की टकसालों की जगह मुगली प्रभाव की मुद्रा शुरू की गई । • सभी राजपूत राज्य अजमेर सूर्य के अन्तर्गत रखे गए । | अजमेर सवे का निर्माण : अकबर ने जब अपने विस्तात सामान्य के विभिन्न यो का मरी हग से संगठन किया । । म प्रदेश का ( राजस्थान का ) कोई प्रान्तीय नाम नहीं था जैसे माला , गुजरात : आदि । अत : यह प्रति अपनी राजपानी । है उसी के प्रति हे राम से ' अजमेर माया ' कहलाया । मह का गवर्नर मुगल सम्राट द्वारा नियुक्त किया ITI पाता शायी होता था । राजपूताना के सभी राजपूत शासक अजमेर सूबेदार के अधीन रहते थे । कुछ रियासतों को गुजरात सूखे के अन्तर्गत रखा गया । | अशा ने प्रान्तों ( सु ) को सरकारों ( जिलों ) में बांटा था ।
उसने अजमेर सूर्य को अजमेर , दिौड , शम्भौर , परा , गौर , बीकानेर और सिरोही नामक सरकारों में बांटा था । औरंगजेब ने जैसलमेर को अलग सरकार बनाया । कारों को परगनों ( तहसीलों ) में बांटा गया था । मुगलों में राजस्थान को 197 परगनों में विभक्त किया था । । मुली ने भूमि नाम एवं भू - राजस्व लगभग उसी प्रकार किया जिस प्रकार अपनी खालसा भूमि में किया । यहाँ तक एवं उपज के रूप में राजस्व वसूला जाता था । उपज वसूली में लाटा , कता आदि का प्रचलन दिखाई देता है । गर मिली में जकात एवं राहदारी भी दिखाई देता है । सभी प्रकार का टैक्स अजमेर सूर्य में जमा होता था ।
आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप ( टीका प्रथा का दुरुपयोग : मुगलों ने यह निश्चित किया था कि किसी भी 7 शक के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नही किया जाएगा लेकिन में ऐसा कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देना । में जिससे कि वे हस्तक्षेप न कर सह । गिलों ने उत्तराधिकार के संबंध में ज्येष्ठाधिकार एवं वागतता को मान्यता किन इसकी उल्लघंन भी किया । कभी - कभी बादशाह की पसंद का व्यक्ति गद्दी पर बैठा , जिससे यह सिद्ध किया । । सपा बादशा में निहित है । सिसे राजपूतों की चेतना अब मुगल शासक को अनुकम्मा प्राण करने तक म र गई । कुछ हस्तक्षेप के मामले से प्रकार थे । सिंह और सगर का मेवाड से नाराज होकर अकबर के दरबार में जाना मुगल सत्ता के लिए हितकारी रामरा गया । । मरद के चन्द्रसेन और उदयसिंह के परेल इगहों को अकबर ने अपने प्रभाव पर्दन का अच्छा साधन माना ।
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