Thursday, June 27, 2019

अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था क्या है

अर्थव्यवस्था से तात्पर्य – नवोदित विकासशील देशों के मन में त की उत्कंठा कि उनका आर्थिक विकास पूँजीवादी देशों की स्वेच्छा पर निर्भर न रहे , वा निगम उन्हें कच्चा माल उत्पन्न करने वाले उपनिवेश न मानें । विश्व आर्थिक व्यवस्था चालन एक - दूसरे की सम्प्रभुता का समादर , अहस्तक्षेप तथा कच्चे माल पर उत्पादक राष्ट्र का इस बा बहुराष्ट्रीय निगम उन्हें कर पर्णाधिकार आदि सिद्धान्तों पर हो । * विकासशील देशों को नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था के निर्माण की काफी आशाएँ चूंकि निवर्तमान विश्व आर्थिक व्यवस्था का पुनर्निर्धारण उनके हितों के अनुकूल होने की भावना है । नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के बुनियादी सिद्धान्त निम्नलिखित हैं?

( 1 ) कच्चे माल की कीमत को घटाने - बढ़ाने की प्रवृत्ति का निरोध । ( 2 ) कच्चे माल और तैयार माल की कीमतों में ज्यादा अन्तर न होना । ( 3 ) विकसित देशों के साथ व्यापार की वरीयता का विस्तार । ( 4 ) विश्व मुद्रा व्यवस्था में सामान्यीकरण करना । ( 5 ) विकासशील देशों द्वारा उत्पादित औद्योगिक माल के निर्यात को प्रोत्साहन देना । ( 6 ) विकासशील देशों द्वारा विकसित देशों के मध्य तकनीकी उत्थान का खाई को पटना7 ) विकासशील देशों पर वित्तीय त्राणों के भार को कम कर ( 8 ) बहुराष्ट्रीय निगम की गतिविधियों पर समचित नि उपरोक्त सभी मांगें विश्वव्यापी है और विकासशील तीसरी विधियों पर समुचित नियन्त्रण लगाना । पशील तीसरी दुनिया के राष्ट्र के नि * रोज अनुकूल हैं । म देता । |

 योगिक और उसकी विकास प्रक्रिया , प्रक्रियाओं का विवेचन निम्नलिखिर । धने में । उनके चंग 3 अपेक्षाकृत और अ ॥ आर्थिक विश्व व्यवस्था सम्बई टर्भ में करेवियन सागर के तटवने । मी जर्मनी स्वीडन , तंजानिया माना , आईवरीकोस्ट तथा बाल मुनिक भारत का अमेरिका ३५ रा पर ब्रा , अमेरिका सम्बन्ध में 2 पश्चिमी ते 1 एक होंगे । ऐसा । विकासशीर बढ़ेगी । लोकतन्त्रीय ऊर्जा आया ' नवीन आर्थिक विश्व व्यवस्था का स्वरूप और उसकी वित आर्थिक विश्व व्यवस्था के स्वरूप और उसकी विकास प्रक्रियाओं को शीषकों के अन्तर्गत किया गया है?

 ( 1 ) कैनकुन शिखर सम्मेलन ( 1981 ) और नवीन आर्थिक वि विचार का अभ्युदय - तीसरी दुनिया के आर्थिक संकट के संदर्भ में कैरेबियन द्वीप पर बसे कैनकुन शहर में अमेरिका , कनाड़ा , ब्रिटेन , फ्रांस , पश्चिमी जर्मनी स्वी अल्जीरिया , बंगलादेश , फिलीपाईन्स , मेक्सिको , वेनेजुएला , गुयाना , आईवरीको आदि देशों की एक शिखर सम्मेलन हुआ । कैनकुन सम्मेलन को शिष्टाचार के अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था की दिशा में एक कदम की संज्ञा दी गयी । कैनकुन शिखर स में भारत ने विकासशील देशों की निर्यात समस्याओं के संदर्भ में एक पाँच - सूत्री हल प्र किया । वह निम्न प्रकार था ( 1 ) जिन्सों के आयात - निर्यात के बारे में नए सिरे से समझौते किए जाएँ । ( ii ) जिन्सों के भाव स्थिर करने के लिए अंकटाड ( संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन ) के तत्वाधान में साझाकोष बनाने की प्रक्रिया को तुरन्त गतिशील बनाया जाए ।

 ( ii ) वरीयता देने की सामान्य योजना को व्यापक बनाया जाए और विकासशील देशों में निर्यात वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाने की प्रवृत्ति को रोका और घटाया जाए । ( i ) रेशों ( जूट , कपास आदि ) सम्बन्धी समझौते के नवीनीकरण के लिए बातचीत शुरू की जाए । ( ७ ) विकासशील देशों के निर्यात पर विभिन्न प्रकार के प्रतिबन्धों की समीक्षा का बन्दोवस्त हो और उन्हें एक निर्धारित अवधि में क्रमशः समाप्त किया जाए । इस प्रकार स्पष्ट है कि विकासशील देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय जगत में विकसित देशों द्वारा बनायी गयी आर्थिक व्यवस्था को अपने हितों के अनुरूप नहीं पाया और कैनकुन सम्मेलन में विकासशील देशों ने विकसित देशों के समक्ष अपनी आर्थिक समस्याओं को रखा तथा भेदभाव की आर्थिक नीति के प्रति असन्तोष को व्यक्त किया और उनके सुधार हेतु सुझाव भी प्रस्तुत किये ।

 विकासशील देशों के हितों के लिए विश्व आर्थिक व्यवस्था पर विचार को नवीन आर्थिक विश्व व्यवस्था के सन्दर्भ में विकासशील देशों ने अपने दृष्टिकोणों को रखा है तथा अनेक कदम भी उठाए हैं । नवीन आर्थिक विश्व व्यवस्था के विचार के उदय के कारण - नवीन आर्थिक वर " व्यवस्था सम्बन्धी विचार के उदय के मूल कारण वर्तमान विश्व आर्थिक व्यवस्था विकासशील देशों का असन्तुष्ट होना है । इस असन्तोष के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित है । ( 1 ) मादी अर्थव्यवस्था का विषमता वद्धिकारी होना और विकसित देशों का अनुदा रवैया हाना - डॉ . प्रभदत्त शर्मा ने अपनी पुस्तक ' अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में इस सम्ब कि विम अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था की विषमता घटाने में दुनिया के सम्पन्न देशो का दि है ।

 इन देशों में दुनिया की एक - चौथाई आबादी रहती है लेकिन आमदनी में उनकी हिस्स 80 है । इसके बावजूद अगर वे मंहगाई बेरोजगारी और विकास दर में हास का सा व्यवस्था के विवश कर १ ने विकासशी देश इन से हिस्सेदारी के कारण जव कठिनाई हि कारण नि उनके आन देशों में नि सम्मेलन देशों से सम्मेलन जाने ल अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में इस सम्बन्ध में लिखा है । के सम्पन्न देशों की दिलचस्पी नहीं । स दर में हास का सामना कर रहेउनके उत्तरोत्तर अधिक पूजी बहल उद्योग देशवासियों को २ नहीं दे सकते । हथियारों या ऐसी ही अन्य स्फीतिकारी मदों पर व्यय मंहगाई को है । वे इन असन्तुलनों को ढो पा रहे हैं तो सिर्फ इसलिए कि वे उद्योग , व्यापार और की के जरिए विकासशील देशों का शोषण कर रहे हैं । इसलिए मौजूदा स्थिति बनाए । में ही उनका निहित स्वार्थ है । वे नहीं चाहते कि विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाएं चंगुल से मुक्त होने के प्रयास में सफल हो सकें , पश्चिम के कुछ देशों का दृष्टिकोण अगर नेक्षाकृत उदार दिखता है?

 तो इसलिए भी कि अन्तर्राष्ट्रीय शोषण तन्त्र में उनकी हिस्सेदारी कम । 3 और अमेरिका का आर्थिक - सामरिक वर्चस्व उनके लिए कष्टकर है । । ( 2 ) विश्व बैंक , अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और उसकी संस्थाओं के सहायता कार्यक्रम में ९ के तटमेरिका का व्यवधान – विश्व बैंक , अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और उसकी संस्थाओं से जो कम ब्याज । ऊन , तंजा1ि पर ऋण राशि दी जाती है विकासशील देश ऐसी ऋण राशि को बढ़ाने के लिए जोर दे रहे हैं अरि । अमेरिका ऐसे ऋण की राशि को बढ़ाने का अत्यधिक विरोध कर रहा है । अमेरिका की इस मार से एक | सम्बन्ध में यह स्पष्ट दृष्टि है कि ऐसी सहायता कम होने से विकासशील देश मजबूर होकर या तो पश्चिमी देशों के बैंकों से ऊंची दर पर अल्पकालीन ऋण लेंगे या बहुराष्ट्रीय निगमों पर निर्भर | होंगे ।

 ऐसा होने से एक तरफ तो पश्चिमी पूँजी पर लाभ की वृद्धि होगी और दूसरी तरफ विकासशील देशों की अर्थरचना पर विकसित देशों के औद्योगिक तथा व्यापारिक तन्त्र की पकड़ बढ़ेगी । अपने इसी दृष्टिकोण के कारण अमेरिका विश्व बैंक तथा मुद्रा कोष के संविधान को लोकतन्त्रीय बनाने का विरोध कर रहा है । इसी कारण तेल आयातक देशों की सहायता हेतु एक ऊर्जा आयोग के फैसले पर भी उसने अमल नहीं किया है । कासशील देशों ( 3 ) विकासशील देशों के प्रस्तावों की उपेक्षा – विकसित देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक जाए । व्यवस्था के अन्तर्गत अपने इस रवैये से भी विकासशील देशों को अपने शोषण से बचने के लिए विवश कर दिया कि वे एक नवीन विश्व अर्थव्यवस्था की स्थापना करें । जैसे — विकसित देशों बातचीत शुरू । ने विकासशील देशों के विश्व बैंक तथा मुद्रा कोष सम्बन्धी प्रस्ताव अनदेखे कर दिए ।

 विकसित देश इन संस्थाओं के सम्बन्ध में न तो वे अपने अधिकार में कमी करने के लिए तैयार हुए और न । समीक्षा का हिस्सेदारी की व्यवस्था में बदलाव के लिए तैयार हुए । | ( 4 ) खनिज तेलों के भावों में वृद्धि से उत्पन्न कठिनाई – वर्तमान विश्व व्यवस्था के त देशों द्वारा कारण जब ओपेक देशों ने मिलकर अपने खनिज तेलों के भावों में वृद्धि कर दी तो इसकी प्रमुख सम्मेलन में कठिनाई विकासशील देशों के सामने ही आयी । विकसित देशों ने तो लागत मूल्य में वृद्धि के था भेदभाव कारण निर्यात भाव में वृद्धि कर दी लेकिन विकासशील देशों के सामने दोहरी मार हुई । एक तो " भी प्रस्तुत उनके आयात मँहगे हो गए , दूसरे तेल निर्यात की कमाई का हिस्सा ओपेक देशों ने पश्चिम के को ' नवीन देशों में निवेश कर दिया । वा है तथा इस प्रकार वर्तमान विश्व आर्थिक व्यवस्था के शोषण भरे तंत्र से बचने के लिए कैनकुन सम्मेलन में इस व्यवस्था में कुछ सुधार के लिए प्रस्ताव रखे गए लेकिन केवल इतना ही विकसित क विश्व के प्रति देशों से मनवाया जा सका कि विकासशील देशों की सहायता राशि में वृद्धि की जाएगी ।

 इस सम्मेलन के बाद तीसरी दुनिया के सम्मेलनों में नवीन अर्थव्यवस्था की स्थापना पर जोर दिया । जाने लगा है(1) प्राकृतिक स्त्रोतो पर राष्ट्रीय संप्रभुता - नई विश्व अर्थ विशेषता यह है कि सभी नई इकसठ तथा विकासशील राष्ट्रह घाइते प्राकृतिक स्रोतों पर रोय सधुवा मिल जानी चाहिए । वे एक ऐसौ . जिसके अन्तर्गत उनके प्राकृतिक स्रोतों पर सम्प्रभुता मिल सके । । 2 ) सरद को समाप्ति — जोन अन्तर्राष्ट्रीय अर्थवत्या ३ = विशेषता यह है कि इसमें वर्तमान अर्थव्यवस्था के संरक्षणवाद को समाप्त करने पर वर्तमान अर्थत्या में विकसित देश संरक्षणवाद को नीति अपनाकर वि । पार को रोकते हैं । वे विकासशील देशों के सामने शुल्क सम्बन्ध रुकावटें आ नयत को हतोत्साहित करते हैं । इससे विकासशील देशों को दोहरो हानि उठानी पड़ तो उनके निर्यात को आघात पहुंचता है और दूसरे विवश होकर उन्हें आयात में २५५३ ६ ३ । कर पड़ी है ।

| ( 3 ) इनवीय जोन इन्डष्ट्रिय अर्थव्यवस्था को एक अन्य विरोध ३ कोई जनतन्त्रीय स्वरूप की वकालत करना है । वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं में असर विश्व और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में भारत मताधिकार प्रणाली के कारण विकट रनर ? विशेषकर अमेरिका और पश्चिमी देशों का वर्चस्व बना हुआ है । वे इन संस्थाओं के निदा प्रभावित करते हैं । दूसरी तरफ विकासशील देश इन संस्थाओं को जनतन्त्रवादी ने है । वकालत कर रहे हैं लेकिन विकसित देश उनको इस मांग को लगातार दुकरा रहे हैं । के । ( सामान्य कोप - नौन अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के एक अन्य प्रमुख विशेष विकासशील देशों के एक सामान्य कोष की स्थापना है । इसके द्वारा विकासशील देश ने शोषण । आर्थिक विकास को स्थिर रखना चाहते हैं । ( 5 ) टैक्नोलॉजी का हस्तान्तरण - नवोन विश्व अर्थव्यवस्था को एक अन्य नुड इंगठन । अईया | विशेषता विकासशील देशों में उचित टैक्नोलॉजी का हस्तान्तरण करना है । वर्तमान के अर्थव्यवस्था में 95 % तकनौको पर विकसित राष्ट्रों के स्वामित्व है ।

 विकासशील देश ३ । लेकिन विकसित देश तकनोको निर्मित वस्तुएं बेचते हैं लेकिन तकनौको नहीं बेचते । नवौन अर्थत् । के अन्तर्गत विकासशील देश तकनौक के उचित हस्तान्तरण की व्यवस्था कराना चाहते हैं । ( 6 ) ब्रेन - देन को रोकना - नवोन विश्व अर्थव्यवस्था को एक अन्य प्रमुख विशेषः । विकासशील देशों के उपलब्ध कौशल को उन्हों के देशों में काम में लेना है अर्थात् इन् । अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत विकासशौल देशों को उपलब्ध ज्ञान विकसित देशों के तरफ जा रहे । इसे जाने से रोकना है । | ( 7 ) अन्य विशेषताएँ – उपर्युक्त विशेषताओं के अतिरिक्त नवोन विश्व अर्थतं । की कुछ अन्य विशेषताएं भी बदलाई जा सकती हैं । जैसे | ( G ) दक्षिण में ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों को खोज करना । । ( a ) विकासशील देशों के कर्जा को रद्द करना । ( a ) बहुराष्ट्रीय निगमों की गतिविधियों पर समुचित नियन्त्रण रखना । ( a ) अविकसित राष्ट्रों को मिलकर क्षेत्रीय संगठनों एवं व्यापारिक समझौतों के पारस्परिक सहयोग प्रदान करना । ( v ) प्य मुद्राओं को समाप्त कर लेन - देन के लिए अन्तर्राष्ट्रिय मुद्रा के एस . डी . आर . को जारी करना आदि ।

1 Comments:

At May 17, 2021 at 9:04 AM , Blogger Unknown said...

Very Very nice dear

 

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