Friday, June 28, 2019

अंग्रेजों और मराठों के बीच संघर्षों का कारण

प्रथम आंग्ल - मराठा युद्ध के कारण - अंग्रेजों और मराठों के बीच प्रथम यद वे कारण निम्नलिखित थे 1 . मराठों की आपसी फूट - 18 नवम्बर , 1772 ई . को पेशवा माधवराव प्रथम की मत्य हो गई और उसकी मृत्यु के पश्चात उसका भाई नारायणराव पेशवा बना परन्तु उसका चाचा रघुनाथ राव स्वयं पेशवा बनना चाहता था । अतः 1773 में उसने नारायणराव की हत्या करवा दी और स्वयं पेशवा बन बैठा परन्तु नाना फड़नवीस तथा अन्य मराठा सरदारों ने रघुनाथ राव को पेशवा मानने से इन्कार कर दिया और उन्होंने नारायण राव के पुत्र माधवराव द्वितीय को पेशवा घोषित कर दिया । इस पर रघुनाथ राव पेशवा पद प्राप्त करने की लालसा से अंग्रेजों की शरण में चला गया ।

 2 . सूरत की सन्धि – रघुनाथ राव ने सूरत पहुंच कर बम्बई की सरकार से सहायता देने की प्रार्थना की । 6 मार्च , 1775 को बम्बई सरकार तथा रघुनाथ राव के बीच एक सन्धि हुई जिसे । सूरत की सन्धि कहते हैं । इस सन्धि की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित थीं ( i ) अंग्रेज रघुनाथ राव को पेशवा बनाने में सहायता देंगे । ( ii ) इसके बदले में रघुनाथ राव अंग्रेजों को सालसेट थाना , बसीन आदि के प्रदेश देगा । ( iii ) रघुनाथ राव अंग्रेजों के शत्रुओं से किसी प्रकार का समझौता नहीं करेगा । ( iv ) रघुनाथ राव सूरत तथा भाँच जिलों के लगान का कुछ भाग अंग्रेजों को देगा । इस सन्धि के कारण अंग्रेजों तथा मराठों के बीच युद्ध होना अनिवार्य हो गया । 3 , लार्ड वारेन हेस्टिग्ज की महत्त्वाकांक्षा – भारत का तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड वारेन हेस्टिग्ज एक महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति धा । वह मराठों की शक्ति का दमन करके भारत में प्रेजी राज्य का विस्तार करना चाहता था । उस समय परिस्थितियां भी उसके अनुकूल बनी हुई थीं । ।

 युद्ध की घटनाएँ — सूरत की सन्धि के अनुसार बम्बई सरकार ने रघुनाथ राव की सहायता के लिए एक अंग्रेजी सेना भेजी । 18 मई , 1775 को अंग्रेजी सेनाओं ने अरास नामक स्थान पर मराठों को परास्त कर दिया । इससे रघुनाथ राव का हौसला बढ़ गया । बम्बई सरकार ने कलकत्ता कौंसिल से अनुमति लिए बिना ही सूरत की सन्धि की थी । रेग्युलेटिंग एक्ट के अनुसार इस प्रकार की सन्धि करने का अधिकार केवल कलकत्ता कसिल को । ही था । अतः लार्ड वारेन हेस्टिग्ज़ ने सूरत की सन्धि को भंग कर दिया तथा पूना सरकार से । सन्धि - वार्ता शुरू की । । ( 1 ) पुरन्दर की सन्धिलाई वारेन हेस्टिग्ज ने 1 मार्च , 1776 को पुना सरकार ( मराठों ) के साथ एक नई सन्धि की जिसे पुरन्दर की सन्धि कहते हैं । इस सन्धि की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित थीं —

( i ) सालसेट तथा वसीन पर अंग्रेजों का अधिकार बना रहेगा । ( ii ) अंग्रेज रघुनाथ राव की सहायता नहीं करेंगे । ( iii ) रघुनाथ राव को 3 लाख 15 हजार रुपये वार्षिक की पेन्शन दी जायेगी । ( iv ) मराठे अंग्रेजों को युद्ध के हर्जाने के रूप में 12 लाख रुपये देंगे । ( ७ ) अंग्रेजों को भड़च जिले की आय भी प्राप्त होगी । बम्बई की सरकार पुरन्दर की सन्धि से सन्तुष्ट नहीं थी । अत : उसने कम्पनी के संचालको । ग्वालि सिन्धि सन्धि निम्न रुपये लिया लिय घटन की । 2 ) = एवं इति से पत्रव्यवहार कर सूरत को सन्धि पर उनकी स्वीकृति प्राप्त कर ली । ( 2 ) बड़गाँव की सन्धि – बम्बई की सरकार ने रघुनाथ राव का पक्ष लिया तथा एक अंग्रेजी सेना पूना पर आक्रमण करने के लिए भेजी ।

 परन्तु 9 जनवरी , 1779 को मराठों ने पुना केनिकट तेलगाँव नामक स्थान पर अंग्रेजी सेना कोबुरी तरह से पराजित किया । अत : विवश होकर की सरकार को 19 जनवरी , 177 ) को मराठों के साथ एक सन्धि करनी पड़ी जिसे बड़गाँव ही सन्धि कहते हैं । इस सन्धि की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित थीं ( i ) 1773 ई . के पश्चात् अंग्रेजों द्वारा मराठों के जीते हुए समस्त प्रदेश उन्हें लौटा दिये जायेंगे । ( ii ) रघुनाथ राव को पूना दरबार को सौंप दिया जायेगा । ( iii ) दो अंग्रेज अधिकारियों को बंधक के रूप में मराठों को सौंपा जाएगा । ( 3 ) वारेन हेस्टिग्ज द्वारा बड़गाँव की सन्धि का विरोध - लार्ड वारेन हेस्टिग्ज ने बड़गाँव की अपमानजनक सन्धि को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया । उसने सन्धि का विरोध करते हुए कहा कि इस सन्धि को पढ़कर में लज्जा से गड़ गया हूँ ।

" अतः लार्ड वारेन हेस्टिग्ज ने जनरल गोडार्ड को पूना पर तथा कैप्टन पोपहम को ग्वालियर पर आक्रमण करने के लिए भेजा । दूसरी ओर मराठा सरदार नाना फडनवीस ने निजाम तथा हैदरअली को अपनी ओर मिलाकर एक संयुक्त मोर्चा स्थापित किया . परन्तु वारेन हेस्टिग्ज ने कूटनीति से काम लेते हुए निजाम को मराठों से अलग कर दिया । फरवरी , 1780 में जनरल गोडार्ड ने अहमदाबाद पर अधिकार कर लिया परन्तु नाना फड़नवीस के नेतृत्व में मराठों ने अप्रैल , 1780 में जनरल गोडार्ड की सेनाओं को बुरी तरह से पराजित कर दिया । अगस्त , 1780 में कैप्टन पोपहम ने महादजी सिन्धिया को परास्त कर ग्वालियर पर अधिकार कर लिया । 1781 में अंग्रेजों ने सिपरी नामक स्थान पर महादजी सिन्धिया को पराजित कर दिया । अन्त में 17 मई , 1782 को पूरा दरबार तथा अंग्रेजों के बीच एक सन्धि हो गई , जिसे सालबाई की सन्धि कहते हैं । | ( 4 ) सालबाई की सन्धि ( 17 मई , 1782 ई . ) सालबाई की सन्धि की प्रमुख शर्ते । निम्नलिखित थीं ( i ) सालसेट तथा भौंच पर अंग्रेजों का अधिकार स्वीकार कर लिया गया । ( ii ) अंग्रेजों ने रघुनाथ राव का पक्ष छोड़ दिया तथा मराठों ने रघुनाथ राव को तीन लाख रुपये वार्षिक पेंशन के रूप में देना स्वीकार कर लिया ।

 ( iii ) अंग्रेजों ने माधवराव द्वितीय को पेशवा स्वीकार कर लिया । ( iv ) मराठों तथा अंग्रेजों ने एक - दूसरे के जीते हुए प्रदेश वापस लौटाना स्वीकार कर लिया । । ( ) यमुना नदी के पश्चिमी प्रदेश पर महादजी सिन्धिया का अधिकार स्वीकार कर लिया गया । । सालबाई की सन्थि का महत्त्व - सालबाई की सन्धि भारतीय इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना है । इस सन्धि से अंग्रेजों को कोई विशेष लाभ नहीं हुआ । फिर भी इतिहासकार इसे अंग्रेजों की एक बड़ी उपलब्धि मानते हैं । इस सन्धि के परिणामस्वरूप अंग्रेजों तथा मराठों के बीच लगभग 2 ) वर्षों तक शान्ति बनी रही । इस अवधि में अंग्रेज अपनी शक्ति को संगठित करने तथा निजाम व हैदरअली की शक्ति को कुचलने में सफल हुए । डॉ . वी . ए . स्मिथ का कथन है कि भारतीय तिहास में सालबाई की सन्धि एक महत्त्वपूर्ण सीमा - चिह्न है क्योंकि इससे मराठों की दुर्जेय शक्ति 20 वर्ष के लिए शान्ति स्थापित हो गई और साथ ही इससे अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो । यपि वै भारत में सर्वश्रेष्ठ शक्ति न बन सके । "

 डॉ . जगन्नाथ मिश्र का कथन है कि ईि की सन्धि से मराठों को नहीं बल्कि कम्पनी को लाभ हुआ ।दितीय आग्ल- मराठा युद्व-1873 ई में अंग्रेजों तथा मराठों के बीच द्वितीय पद हुआ जिसमें मराठा सरदार सिन्धिया तथा भोंसले की निर्णायक पराजय हुई । द्वितीय आम्ल - मराठा युद्ध के कारण - द्वितीय रिल - मराठा युद्ध के प्रमुख कारण नहीं रखे बनायेगा निम्नलिखित थे ( 1 ) लाई वेलेजली की विस्तारवादी नीति – लार्ड वेलेजली एक महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति था । वह भारत में अंग्रेजी कम्पनी की सर्वोच्च सत्ता स्थापित करना चाहता था । अतः वह मराठों की शक्ति का दमन करके भारत में अंग्रेजी राज्य का विस्तार करना चाहता था । ( 2 ) मराठा - संघ में फूट - 13 मार्च , 1800 ई . को मराठा सरदार नाना फड़नवीस की मृत्यु हो गई तथा उसकी मृत्यु के पश्चात् मराठा संघ में फूट पड़ गई । दौलतराव सिन्धिया तथा जसवन्तराव होलकर दोनों ही पेशवा तथा पूना दरबार पर अपना नियन्त्रण स्थापित करना चाहते थे ।

 पेशवा बाजीराव द्वितीय ने सिन्धिया को पक्ष लिया तथा जसवन्तराव होल्कर के भाई बिजी होल्कर का व करवा दिया । इस पर जसवन्तरराव होल्कर बड़ा क्रुद्ध हुआ और उसने 1802 में पूना पर आक्रमण कर दिया तधा सिन्धिया और पेशवा की संयुक्त सेनाओं को पराजित कर दिया । पेशवा भागकर बसीन के द्वीप में अंग्रेजों की शरण में चला गया । ( 3 ) यसीन की सन्धि – पेशवा बाजीराव द्वितीय ने लार्ड वेलेजली से सहायता देने की प्रार्थना की । उसने लाई वेलेजली की सहायक सन्धि की शतों को स्वीकार कर लिया जिस पर अंग्रेज उसकी सहायता करने के लिए तैयार हो गए । 31 दिसम्बर , 1802 को पेशवा बाजीराव तथा अंग्रेजों के बीच एक सन्धि हो गई , जिसे ' बसीन की सन्धि ' कहते हैं । इस सन्धि की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित थी पराजय पर अहि अंग्रेजों - पर सिनि को अंग्रे थीं जोधपुर सौंप दि ( 1 ) पेशवा ने अपने राज्य में अंग्रेजी सेना रखना स्वीकार कर लिया । ( 2 ) पेशवा ने अंग्रेजी सेना के खर्चे के लिए 26 लाख रुपये वार्षिक देना भी स्वीकार कर । लिया । ( 3 ) पेशवा अंग्रेज - विरोधी विदेशियों को अपने राज्य में नहीं रखेगा ।

 ( 4 ) पेशवा अंग्रेजों की अनुमति के बिना किसी अन्य राज्य से युद्ध , सन्धि अथवा पत्र - व्यवहार नहीं करेगा । ( 5 ) निजाम तथा गायकवाड़ के झगड़ों में पेशवा अंग्रेजों को मध्यस्थ बनायेगा । बसीन की सन्धि अंग्रेजों की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी । इस सन्धि द्वारा पेशवा ने मराठों के सम्मान तथा स्वतन्त्रता को अंग्रेजों के हाथों बेच दिया था । सिडनी ओवन का कथन है कि इसे । सन्धि ने प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजी कम्पनी को भारत का साम्राज्य दिला दिया । इस सन्धि के कारण अंग्रेजों तथा मराठों के बीच युद्ध अनिवार्य हो गया क्योंकि लार्ड । वेलेजली को मराठों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार मिल गया था ।

 बसीन की । कारण द्वितीय परन्तु विरोध आक्र सन्धि के अनुसार अंग्रेजों ने 13 मई , 1803 को बाजीराव को पुन : पूना में पेशवा की गद्दी पर बिठा दिया । परन्तु अनेक मराठा सरदारों ने बसीन की सन्धि का विरोध किया । सिन्धिया तथा भोसल ने अंग्रेजों के विरुद्ध संयुक्त मोर्चा बना लिया परन्तु होल्कर ने इस संयुक्त मोर्चे में मिलने से इन्कार कर दिया । गायकवाड़ भी तटस्थ रहा । अतः सिन्धिया तथा भोंसले ने युद्ध की तैयारी शुरू कर दी । इस पर लार्ड वेलेजली ने 7 अगस्त , 1803 को मराठों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी । युद्ध की घटनाएं - ( 1 ) भोसले की पराजय - अगस्त , 1803 में अंग्रेजों तथा मरा बीच युद्ध शुरू हुआ ।

 12 अगस्त , 1803 को अंग्रेजी सेनाओं ने अहमदनगर के दर्ग पर आप कर लिया । इसके पश्चात् 23 सितम्बर , 1803 को अंग्रेजों ने सिन्धियों तथा भौसले की स था । होल्वे पराडि नवम्ट पराटि यी तथा भौसले की संयुक्तसेनाओ को असाई नामक स्थान पर पराजित किया । भसिले को असीरगढ़ तथा अरगाँव नामक * पर पराजित होना पड़ा । अतः विवश होकर भोसले को 17 दिसम्बर , 1803 को अंग्रेजों के साथ एक सन्धि करनी पड़ी , जिसे देवगाँव की सन्धि कहते हैं ।

 ( 2 ) देवगाँव की सन्धि - - इस सन्धि की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित थीं । ( i ) भासने ने कटक का प्रदेश अंग्रेजों को सौंप दिया । ( i ) ने ने वर्धा नदी के पश्चिम का प्रदेश भी अंग्रेजों को सौंपना स्वीकार कर लिया । ( iii ) ले ने नागपुर में एक अंग्रेज रेजीडेन्ट रखना स्वीकार कर लिया । ( iv ) उसने यह भी स्वीकार कर लिया कि वह अंग्रेज - विरोधी लोगों को अपने राज्य में नहीं रखेगा । | ( ७ ) निजाम तथा पेशवा के साथ होने वाले झगड़ों में भौंसले अंग्रेजों को मध्यस्थ बनायेगा । ( 3 ) उत्तरी भारत में सिन्धिया की पराजय - उत्तरी भारत में सिन्धिया को अनेक स्थानों पर पराजय का मुंह देखना पड़ा । सितम्बर , 1803 में जनरल लेक ने सिन्धिया को पराजित करके दिल्ली पर अधिकार कर लिया और मुगल सम्राट शाह आलम को अपने संरक्षण में ले लिया ।

 शीघ्र ही अंग्रेजों ने आगरा पर भी अधिकार कर लिया । नवम्बर , 1803 में अंग्रेजों ने लासवाड़ी नामक स्थान पर सिन्धिया की सेना को बुरी तरह से पराजित किया । अन्त में 30 दिसम्बर , 1803 को सिन्धिया को अंग्रेजों के साथ एक सन्धि करनी पड़ी , जिसे सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि कहते हैं । ( 4 ) सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि – सुर्जी अर्जुनगाँव की सन्धि की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित ( ) सिन्धिया ने गंगा - यमुना के मध्य का प्रदेश अंग्रेजों को सौंप दिया । उसने जयपुर , जोधपुर तथा गोहद पर अंग्रेजों का संरक्षण स्वीकार कर लिया । ( ii ) सिन्धिया ने अहमदनगर , भड़चि तथा बुन्देलखण्ड का कुछ भाग भी अंग्रेजों को । सौंप दिया ।

 ( iii ) सिन्धिया ने वेलेजली की सहायक सन्धि की शर्तों को स्वीकार कर लिया । ( iv ) उसने पेशवा , निजाम तथा गायकवाड़ पर अपने समस्त दावे त्याग दिए । | ( 5 ) हाल्कर से युद्ध - 1804 में अमजी तथा होल्करे के बीच युद्ध हुआ जिसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे ( 1 ) होल्कर द्वारा सहायक सन्धि की शतों को स्वीकार न करना — यद्यपि पेशवा बाजीराव द्वितीय सिन्धिया तथा भौंसले लार्ड वेलेजली की सहायक सन्धि की शर्तों को स्वीकार कर चुके थे , परन्त डोल्कर ने सहायक सन्धि की शर्तों को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया और मेजों का विरोध करना जारी रखा । अत : अंग्रेजों ने होल्कर की शक्ति का दमन करने का निश्चय कर लिया । |

 ( ii ) होल्कर द्वारा जयपुर राज्य पर आक्रमण करना - जचे होल्कर ने जयपुर राज्य पर आक्रमण करके वहाँ लुटमार की तो अंग्रेज बड़े नाराज हुए क्योंकि जयपुर राज्य उनका मित्र - राज्य पा । अतः उन्होंने होल्कर को दण्डित करने का निश्चय कर लिया । ( 6 ) युद्ध की घटनाएँ - 16 अप्रैल , 1801 को अंग्रेजों तथा होल्कर के बीच युद्ध छिड़ गया । करने कोटा के निकट मुकन्दरा नामक स्थान पर अंग्रेज सेनापति कर्नल मानयन को बुरी तरह से किया और उसने दिल्ली पर आक्रमण कर दिया परन्तु उसे दिल्ली में सफलता नहीं मिली । 4 में आज सेनापति लाई लेक ने होल्कर को हीरा तथा फरुखाबाद नामक स्थानों पर या | होल्कर भाग कर पंजाब चला गया । अतः इस युद्ध में होल्कर की शक्ति को पूरी पराजित किया।।

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