प्लासी और बक्सर के युद्ध का कारण
( 1 ) बंगाल के धन - सम्पन्न प्रदेश पर अधिकार करना - गाल ए ॥ पापा उपजाऊ आन्त था । अत : अंग्रेजी कम्पनी बंगाल के न सम्पन्न प्रदेश पर कार से अपनी आपिक स्थिति सदद करना चाहती थी । ( 2 ) सिराजुद्दौला का अनादर - जब 175 ई . में सिराजुद्दौला बंगाल की गद्दी पर बैठा तो अंग्रेजी कम्पनी ने प्रचलित परिपाटी का पालन नहीं किया तथा सिराजुला ही और उदासीनता । प्रकट करके उसका अनादर किया । अत : सिराजुदीला और कम्पनी के बीच कटुता बदती गई ।
| ( 3 ) उत्तराधिकार के पइयत्र में भाग लेना – पेज के कार्य आने पर सिला की मौसी सीटी बेगम तथा शौकत जग ने सिराजदौला को बंगाल का नाम बन जाने का । कड़ा विरोध किया था । अतः ऐसी दशा में सिराजुद्दौला को अंजों से नाराज होना । । । । । । । पहुंचकर । पहा । अन् स्थापित लिया । सिराजु पारल अपेजों | ( 4 ) अंग्रेजों द्वारा सिराजुद्दौला के विरोधियों को सहायता देना – सिराजुद्दौला । धर्म का प्रमुख कारण यह था कि मेज सिराजुद्दौला के विरोधियों को भड़काते थे तथा उन्हें संरक्षण प्रदान किया करते थे । सिराजुद्दौला का विरोधी दीवान राजवल्लभ का रुख और उसका पा कृणवल्लभ राय खजाना लेकर अंजों के पास भाग गया और सिराला के बार - बार अनुरोप करने पर भी अंग्रेजों ने कृष्णवल्लभ राय को लौटाने से इन्कार कर दिया । | ( 5 ) अंग्रेजों द्वारा व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग –
1717 ई . में मुगल सम्राट फर्रुखसियर ने अंग्रेजी कम्पनी को 3000 रु . वार्षिक कर के बदले में बंगाल , बिहार और उड़ीसा । में नि : शुल्क व्यापार करने का अधिकार दे दिया था परन्तु अंग्रेजी कम्पनी के अधिकारियों एवं । कर्मचारियों ने इन व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया । । अपने दस्तक ( अनुमतिपत्र ) भारतीय व्यापारियों को बेचकर धन कमाने लगे और नवाब को थक क्षति पहुंचाने लगे । इस कारण भी रिपराजुद्दौला और ओजों के बीच कटुता बढ़ती गयी ।
| ( 6 ) किलावन्दी करना - जय सिराजुद्दौला के नवान बनने पर अंग्रेजी और फ्रांसीसियों ने अपनी बस्तियों की किलाबन्दी करना शुरू किया तो सिराजुदीला ने इसका विरोध किया । उसने अंग्रेजी तथा फ्रांसीसी दोनों कम्पनियों को आदेश दिया कि वे अपनी बस्तियों की किलेबन्दी करना बन्द कर दें । फ्रांसीसी कम्पनी ने तो सिराजुद्दौला की आज्ञा का पालन करना स्वीकार करलिया परन्तु अंग्रेजों ने नवाब के आदेश का पालन करने से इन्कार कर दिया । इस पर जौला बड़ा क्रुद्ध हुआ और उसने अंग्रेजी कम्पनी को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया । | ( 7 ) कासिम बाजार तथा कलकत्ता पर सिराजुद्दौला का अधिकार करना - 4 जून , 1756 को सिराजुद्दौला की सेना ने अंग्रेजों की कासिम बाजार की कोठी पर अधिकार कर लिया । इसके पश्चात् नवाब की सेना ने कलकत्ता पर आक्रमण कर दिया ।
कलकत्ता का अंग्रेज गवर्नर ड्रेक जान बचाकर भाग निकला तथा 20 जून , 1756 को कलकत्ता पर भी नवाब की सेनाओं का अधिकार हो गया । इस लड़ाई के साथ ब्लैक होल की दुर्घटना भी शामिल है । कहा जाता है कि 20 जून की रात्रि को नवाब के सैनिकों ने 146 अंग्रेज बन्दियों को एक 18 फुट लम्बी तथा 14 फुट और 10 इन्च चौड़ी कोठरी में बन्द कर दिया । इस कोठरी में दम घुटने के कारण 123 व्यक्ति मर गये तथा केवल 23 व्यक्ति ही जीवित बचे । अनेक इतिहासकार इस ब्लैक होल की दुर्घटना को । कपोल - कल्पित मानते हैं । | ( 8 ) कलकत्ता पर अंग्रेजों का पुनः अधिकार - - 8 ) अंग्रेज तथा 500 भारतीय सैनिकों को लेकर क्लाइव दिसम्बर , 1756 में स्थल - मार्ग से बंगाल के लिए रवाना हुआ ।
28 दिसम्बर , 1756 को क्लाइव ने कलकत्ता पर आक्रमण किया । मानिकचन्द्र के विश्वासघात के कारण 2 जनवरी , 1757 को अंग्रेजों ने कलकत्ता पर पुनः अधिकार कर लिया । इसके पश्चात् अंग्रेजों ने हुगली तथा उसके पास - पड़ौस के स्थानों को लूटा । ( 9 ) अलीनगर की सन्धि - 6 फरवरी , 1757 को सिराजुद्दौला ने कलकत्ता के निकट पहुंचकर कलकत्ता पर आधिपत्य करने का प्रयास किया परन्तु उसे असफलता का मुंह देखना पड़ा । अन्त में उसे 9 फरवरी , 1757 को अंग्रेजों के साथ एक सन्धि करनी पड़ी जिसे ' अलीनगर की सन्धि ' कहते है । इस सन्धि की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित थीं ( i ) अंग्रेज विहार , बंगाल एवं उड़ीसा में बिना चुंगी दिये व्यापार कर सकेंगे । ( i ) अंग्रेज अपनी इच्छानुसार कलकत्ता की किलेबन्दी कर सकेंगे ।
( iii ) अंग्रेजों को सिक्का ढालने की अनुमति दी जाए । इसके पश्चात् अंग्रेजों ने चन्द्रनगर की फ्रांसीसी बस्ती पर अधिकार कर लिया । ( 10 ) अंग्रेजों का सिराजुद्दौला के विरुद्ध षड्यन्त्र – अंग्रेज बंगाल पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए दृढ़ - प्रतिज्ञ थे । अतः क्लाइव ने सिराजुद्दौला के विरुद्ध षड्यन्त्र रचना शुरु कर दिया । उसने सिराजुद्दौला के मुख्य सेनापति मीरजाफर को लालच देकर अपने पक्ष में कर लिया । उसे बंगाल का नवाब बनाने का वचन दिया गया जिसके फलस्वरूप उसने अपने स्वामी सिराजुद्दौला के साथ विश्वासघात करना स्वीकार कर लिया । मीरजाफर के अतिरिक्त अमीरचन्द , यारलुत्फ , राजदुर्लभ आदि भी इस षड्यन्त्र में शामिल हो गए । परिणामस्वरूप 1 ) जून , 1757 को अंग्रेजों और मीरजाफर के बीच एक गुप्त सन्धि हुई , जिसकी मुख्य शर्ते निम्नलिखित थीं ( i ) सिराजुद्दौला के स्थान पर अंग्रेजी कम्पनी मीरजाफर को बंगाल का नवाब बना देगी । । ( ii ) मीरजाफर अंग्रेजी कम्पनी को एक करोड़ रुपया युद्ध - हजन के रूप में देगा ।
( iii ) . मीरजाफर ने अंग्रेजों को कलकत्ता एवं कासिम बाजार की किलेबन्दी की अनुमति प्रदान करने का वचन दिया । षड्यन्त्र पूरा हो जाने पर क्लाइव ने सिराजुद्दौला पर अलीनगर की सन्धि का उल्लंघन नका आरोप लगाया । यद्यपि सिराजुद्दौला ने इस आरोप को खण्डन किया परन्तु क्लाइव ने वाब के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने का निश्चय कर लिया ।
प्लासी का युद्ध ( 23 जून 1757 ई . ) - क्लाइव ने 300 सैनिकों के साथ नवान राजधानी की ओर कूच किया । सिराजुद्दौला भी 50 , 000 सैनिकों की विशाल सेना लेकर अं ) का सामना करने के लिए राजधानी से चल पड़ा और प्लासी के मैदान में आ डटा । 23 1757 को प्रातः 9 बजे दोनों सेनाओं में युद्ध आरम्भ हुआ । मीरजाफर तथा राजदुर्लभ अपनी विशाल सेनाओं के साथ दर्शकों की भांति निष्क्रिय खड़े रहे परन्तु मीर मर्दान तथा मोहनलाल नामक स्वामीभक्त सरदारों ने अंग्रेजों का वीरतापूर्वक मुकाबला किया परन्तु अपने विश्वासघाती । सरदारों के कारण सिराजुद्दौला को पराजय का मुंह देखना पड़ा ।
सिराजुद्दौला अपने प्राण बचाने के लिए युद्ध क्षेत्र से भाग निकला । थोड़े दिनों बाद ही वह बन्दी बना लिया गया और शीघ्र ही । सिराजुद्दौला का वध कर दिया गया । | प्लासी की लड़ाई का परिणाम और महत्व 1 . राजनीतिक परिणाम ( i ) प्लासी की लड़ाई में विजय प्राप्त करके अंग्रेजों ने बंगाल पर अपना आधिपत्य कर लिया । यद्यपि बंगाल की गद्दी पर मीरजाफर को बिठाया गया परन्तु वह अंग्रेजों की कठपुतली मात्र था । का मुके 4 . नैति अमीर खरीदा मिला भवि लड़ा आ । 5 4 3 1 2 ( i ) प्लासी की विजय से अंग्रेजी कम्पनी की शक्ति और प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई । अब वह केवल एक व्यापारिक कम्पनी न रह कर राजनैतिक सत्ता हो गई । ( iii ) प्लासी की विजय से अंग्रेजों का मनोबल बढ़ गया । बंगाल से उन्हें जो अपार धनराशि मिली , उसके कारण उनके साधनों में वृद्धि हुई और वे कर्नाटक के युद्ध में फ्रांसीसियों को परास्त करने में सफल हुए । ( iv ) प्लासी की विजय से अंग्रेजों की महत्वाकांक्षाएँ बढ़ गई
। अब उन्होंने शेष भारत को भी अपने अधीन करने का प्रयल शुरु कर दिया । । ( v ) प्लासी की विजय ने मुगल साम्राज्य की दुर्बलता को प्रकट कर दिया । मुगल - सम्राट की आँखों के सामने अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला को अपदस्थ कर अपने कठपुतली मीरजाफर को बंगाल का नवाब बना दिया । ( G ) प्लासी की विजय ने भारत की राजनीतिक दुर्बलता भी प्रकट कर दी । 2 . आर्थिक परिणाम | ( i ) अंग्रेजी कम्पनी को मीरजाफर से अतुल धनराशि प्राप्त हुई । अंग्रेजी कम्पनी को मीरजाफर से 1 , 73 , 96 , 761 रुपये प्राप्त हुए । ( ii ) मीरजाफर ने अंग्रेज अधिकारियों को 12 . 5 लाख पौंड दिये । इसमें से क्लाइव को 294 , 000 पौंड तथा वाटसन को 1 , 17 , 000 पौंड प्राप्त हुए । ( ii ) अंग्रेजी कम्पनी को चौबीस परगने की जमींदारी प्राप्त हुई । इस प्रदेश की वार्षिक आय लगभग 15 लाख रुपया थी ।
| ( i ) अंग्रेजी कम्पनी को बंगाल में कर - मुक्त व्यापार करने की स्वतन्त्रता मिल गई । कम्पनी को पान , सुपारी और तम्बाकू के व्यापार का एकाधिकार भी प्राप्त हुआ । ( v ) अंग्रेजी कम्पनी को कलकत्ता में अपने सिक्के ढालने की स्वतन्त्रता मिल गई । ( i ) प्लासी की विजय के फलस्वरूप अंग्रेजी कम्पनी की आर्थिक दशा अच्छी हो गई । । ( vii ) कम्पनी के व्यापार की अत्यधिक उन्नति हुई३ . सैनिक परिणाम -(1)प्लासी के युद्ध ने भारतीय सैन्य - संगठन की दुर्बलता प्रकट कर दी । अंग्रेजों की एक कोटी - सी प्रशिक्षित तथा अनुशासित सेना ने नवाब पर विजय प्राप्त करके अपने सैन्य - संगठन की श्रेष्ठता सिद्ध कर दी । | ( ii ) बंगाल में बारुद की खानों पर अंग्रेजों का एकाधिकार स्वीकार कर लिया गया जिससे अंग्रेजों का तोपखाना और भी शक्तिशाली हो गया । ( iii ) मीरजाफर की सैन्य शक्ति दुर्बल हो गई । अब वह अंग्रेजों की शक्तिशाली सेना का मुकाबला करने में असमर्थ थी । 4 . नैतिक परिणाम | ( G ) प्लासी की लड़ाई से भारतीयों का नैतिक पतन प्रकट हो गया । मीरजाफर , अमीरचन्द आदि के विश्वासघात से अंग्रेजों को विश्वास हो गया कि धन देकर भारतीयों को खरीदा जा सकता है और इस आधार पर अपने राजनीतिक स्वार्थ पूरे किये जा सकते हैं ।
| ( ii ) अंग्रेजों की कुचक्रों और षड्यन्त्रों द्वारा सफलता प्राप्त करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिला । | ( iii ) अंग्रेजों ने ' फूट डालो और शासन करो ' की नीति की सफलता को देख कर इसे भविष्य में भी अपनाने का निश्चय कर लिया । स्पष्ट है कि प्लासी का युद्ध परिणामों की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण था । प्लासी की लड़ाई ने ही भारत में ब्रिटिश सत्ता की नींव रखी । प्लासी की विजय से अंग्रेजी कम्पनी के आर्थिक एवं सैनिक साधनों में वृद्धि हुई , उनाकी महत्वाकांक्षाएँ बढ़ गई और उन्हें समस्त भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित करने को प्रोत्साहन मिला । मीर कासिम का बंगाल का नवाव बनना - 1757 ई . में प्लासी के युद्ध के बाद अंग्रेजों ने मीरजाफर को बंगाल का नया नवाब बना दिया । उसने 1757 ई . से 1760 ई . तक बंगाल में शासन किया ।
मीरजाफर एक अयोग्य और दुर्बल शासक था । उसकी अयोग्यता , अदूरदर्शिता तथा दुर्बलता के कारण राज्य में अशान्ति और अराजकता फैल गई । जब मीरजाफर अंग्रेजों की धन सम्बन्धी माँग पूरी न कर सका तो अंग्रेजों ने मीरजाफर के स्थान पर उसके दामाद मीरकासिम को बंगाल का नवाब बनाने का निश्चय कर लिया । मीरजाफर को 15 हजार रुपये वार्षिक की पेन्शन दे दी गई तथा 20 अक्टूबर , 1760 को मीर कासिम को बंगाल का नवाब बना दिया गया । बंगाल का नवाब बनने के शीघ्र पश्चात् मीर कासिम और अंग्रेजों में मनमुटाव उत्पन्न हो गया और अन्त में 1763 ई . में दोनों के बीच युद्ध छिड़ गया , जिसे बक्सर का युद्ध कहते हैं ।
| बक्सर के युद्ध के कारण 1 . मीर कासिम की महत्वाकांक्षाए - मीर कासिम एक महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति था । उसने बंगाल का नवाब बनते ही स्वतन्त्रतापूर्वक आचरण करना शुरु कर दिया । उसने उन जमींदारों से लगान वसूल किया जो बहुत समय से उसे दबाये बैठे थे । उसने भ्रष्ट अधिकारियों को दण्ड दिया और थोड़े समय में ही अंग्रेजी कम्पनी का बहुत सा ऋण चुका दिया । इस प्रकार मीर कासिम ने भशासनिक कुशलता का परिचय दिया परन्तु अंग्रेज उसका स्वतन्त्र आचरण सहन नहीं कर जी कम्पनी उसकी स्वतन्त्र सत्ता को स्वीकार करने को तैयार नहीं थी । अतः दोनों पक्षों सके । अंग्रेजी कम्पनी उस मैं कटुता बढ़ती गई ।
2 . सैनिक संगठन को दट करना - अंग्रेजों की कुटिल चालों और षड्यन्त्रों से बचने लम द्वित ना सौर कासिम ने मुर्शिदाबाद के स्थान पर मुंगेर को अपनी राजधानी बनाया । उसने मुंगेर क मदद किलेबन्टी की ओर 40 हजार सैनिकों की एक विशाल सेना का गठन किया । उसने मेरे वर्ष इधर में गोला - बारुद तैयार करने का एक नया कारखाना स्थापित किया । मीर कासिम की सैनि तैयारियों से अपेज बड़े चिन्तित हुए और वे मीर कासिम को सन्देह की दृष्टि से देखने लगे । ३ . प्लासी की पराजय का बदला लेना - 1757 ई . में अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला को प्लासी जवाब ! की लड़ाई में पराजित कर दिया था । मीर कासिम इस पराजय से बड़ा दुखी था और इस पराजय इलाहाबा के कलंक को धो डालना चाहता था । डॉ . नन्दलाल चटर्जी के मतानुसार , ' बक्सर के युद्ध का एक । प्रमुख कारण यह भी था कि मीर कासिम प्लासी के परिणामों को ध्वस्त कर नवाब को पुनः उसस शक्तिशाली बनाना चाहता था और कम्पनी को केवल व्यापारिक हलचलों तक ही सीमित रखना । कर लि चाहता था ।
4 . हिन्दू जमीदारों का दमन - विहार का डिप्टी गवर्नर रामनारायण अंग्रेजों का प्रबल सेवा समर्थक धा । मीर कासिम ने उसे गबन के आरोप में बन्दी बना लिया और उसका वध करवा दया । अंग्रेज मीर कासिम के इस कार्य से बड़े नाराज हुए और उन्होंने मीर कासिम की शक्ति पर अंकुश लगाने का निश्चय कर लिया । 5 . व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग - 1717 ई . में मुगल - सम्राट फर्रुखसियर ने 300 रुपये वार्षिक कर के बदले में अंग्रेजी कम्पनी को बंगाल में निशुल्क व्यापार करने का अधिकार दे दिया था परन्तु कम्पनी के अधिकारी एवं कर्मचारी इस अधिकार का दुरुपयोग कर हे थे । वे भारतीय व्यापारियों को दस्तक बेच कर भारी लाभ कमाते थे । इस प्रकार अंग्रेजों के अनियमित एवं निःशुल्क व्यापार से मीरकासिम को लगभग 25 लाख रुपये प्रतिवर्ष की हानि हो ( ही थी ।
दिसम्बर , 1761 में मीरवासिम ने तत्कालीन गवर्नर वेन्संटार्ट को एक पत्र में अनियमित व्यापार की ओर उसका ध्यान आकर्षित करते हुए इसे बन्द करने की प्रार्थना की परन्तु इस पर अंग्रेजों ने कोई ध्यान नहीं दिया । विवश होकर मार्च 1763 में मीर कासिम ने व्यापार पर लगाये गए शुल्क को हटा लिया । अब बंगाल के व्यापारी भी अंग्रेज व्यापारियों के समकक्ष बन गए । और उन्हें बिना शुल्क दिये व्यापार करने का अधिकार मिल गया । मीर कासिम की इस घोषणा से अंग्रेज अत्यधिक नाराज हुए और उन्होंने मीर कासिम के विरुद्ध षड्यन्त्र रचना शुरु कर दिया । मीर कासिम तथा अंग्रेजों के बीच संघर्ष - 1763 ई . में अंग्रेजों के एजेण्ट एलिन ने पटना पर अधिकार कर लिया परन्तु मीर कासिम ने अपनी सेना भेजकर पटना पर पुनः अधिकार कर लिया । मीर कासिम को जुलाई , 1763 में बंगाल के नवाब पद से हटा दिया गया और मीरजाफर को पुनः बंगाल का गवर्नर बना दिया गया ।
मेजर एडम्स ने अगस्त , 1763 में मीर कासिम को कटी , गिरिमा , मुर्शिदाबाद , मुंगेर आदि स्थानों पर पराजित किया । अन्त में उदयबाला के युद्ध में मीर कासिम की बुरी तरह से पराजय हुई और उसके 15 हजार सैनिक मार डाले गए । इस पराजय से मीर कास्मि के हदय पर बहुत बड़ा आघात लगा और वह पटना की ओर चला गया । इसके पश्चात् पटना से भागकर मीर कासिम अवध के नवाब शुजाउद्दौला के पास चला गया । ववसर का युद्ध - 17 ( 4 में मीर कासिम , शुजाउद्दौला और शाह आलम द्वितीय को सम्मिलित सेनाओं ने अंग्रेजों से टक्कर लेने के लिए पटना की ओर प्रस्थान किया । दूसरी ओर मेजा मुनरो के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने भी बक्सर की ओर प्रस्थान किया । 23 अक्टूबर 174 को दोनों पक्षों में बक्सर नामक स्थान पर घमासान युद्ध है । दोनों ओर से अनेक सैनिक मारे । गए । अन्त में अंग्रेजों की विजय और सम्मिलित सेना की पराजय हुई ।
| ( 3 ) उत्तराधिकार के पइयत्र में भाग लेना – पेज के कार्य आने पर सिला की मौसी सीटी बेगम तथा शौकत जग ने सिराजदौला को बंगाल का नाम बन जाने का । कड़ा विरोध किया था । अतः ऐसी दशा में सिराजुद्दौला को अंजों से नाराज होना । । । । । । । पहुंचकर । पहा । अन् स्थापित लिया । सिराजु पारल अपेजों | ( 4 ) अंग्रेजों द्वारा सिराजुद्दौला के विरोधियों को सहायता देना – सिराजुद्दौला । धर्म का प्रमुख कारण यह था कि मेज सिराजुद्दौला के विरोधियों को भड़काते थे तथा उन्हें संरक्षण प्रदान किया करते थे । सिराजुद्दौला का विरोधी दीवान राजवल्लभ का रुख और उसका पा कृणवल्लभ राय खजाना लेकर अंजों के पास भाग गया और सिराला के बार - बार अनुरोप करने पर भी अंग्रेजों ने कृष्णवल्लभ राय को लौटाने से इन्कार कर दिया । | ( 5 ) अंग्रेजों द्वारा व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग –
1717 ई . में मुगल सम्राट फर्रुखसियर ने अंग्रेजी कम्पनी को 3000 रु . वार्षिक कर के बदले में बंगाल , बिहार और उड़ीसा । में नि : शुल्क व्यापार करने का अधिकार दे दिया था परन्तु अंग्रेजी कम्पनी के अधिकारियों एवं । कर्मचारियों ने इन व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया । । अपने दस्तक ( अनुमतिपत्र ) भारतीय व्यापारियों को बेचकर धन कमाने लगे और नवाब को थक क्षति पहुंचाने लगे । इस कारण भी रिपराजुद्दौला और ओजों के बीच कटुता बढ़ती गयी ।
| ( 6 ) किलावन्दी करना - जय सिराजुद्दौला के नवान बनने पर अंग्रेजी और फ्रांसीसियों ने अपनी बस्तियों की किलाबन्दी करना शुरू किया तो सिराजुदीला ने इसका विरोध किया । उसने अंग्रेजी तथा फ्रांसीसी दोनों कम्पनियों को आदेश दिया कि वे अपनी बस्तियों की किलेबन्दी करना बन्द कर दें । फ्रांसीसी कम्पनी ने तो सिराजुद्दौला की आज्ञा का पालन करना स्वीकार करलिया परन्तु अंग्रेजों ने नवाब के आदेश का पालन करने से इन्कार कर दिया । इस पर जौला बड़ा क्रुद्ध हुआ और उसने अंग्रेजी कम्पनी को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया । | ( 7 ) कासिम बाजार तथा कलकत्ता पर सिराजुद्दौला का अधिकार करना - 4 जून , 1756 को सिराजुद्दौला की सेना ने अंग्रेजों की कासिम बाजार की कोठी पर अधिकार कर लिया । इसके पश्चात् नवाब की सेना ने कलकत्ता पर आक्रमण कर दिया ।
कलकत्ता का अंग्रेज गवर्नर ड्रेक जान बचाकर भाग निकला तथा 20 जून , 1756 को कलकत्ता पर भी नवाब की सेनाओं का अधिकार हो गया । इस लड़ाई के साथ ब्लैक होल की दुर्घटना भी शामिल है । कहा जाता है कि 20 जून की रात्रि को नवाब के सैनिकों ने 146 अंग्रेज बन्दियों को एक 18 फुट लम्बी तथा 14 फुट और 10 इन्च चौड़ी कोठरी में बन्द कर दिया । इस कोठरी में दम घुटने के कारण 123 व्यक्ति मर गये तथा केवल 23 व्यक्ति ही जीवित बचे । अनेक इतिहासकार इस ब्लैक होल की दुर्घटना को । कपोल - कल्पित मानते हैं । | ( 8 ) कलकत्ता पर अंग्रेजों का पुनः अधिकार - - 8 ) अंग्रेज तथा 500 भारतीय सैनिकों को लेकर क्लाइव दिसम्बर , 1756 में स्थल - मार्ग से बंगाल के लिए रवाना हुआ ।
28 दिसम्बर , 1756 को क्लाइव ने कलकत्ता पर आक्रमण किया । मानिकचन्द्र के विश्वासघात के कारण 2 जनवरी , 1757 को अंग्रेजों ने कलकत्ता पर पुनः अधिकार कर लिया । इसके पश्चात् अंग्रेजों ने हुगली तथा उसके पास - पड़ौस के स्थानों को लूटा । ( 9 ) अलीनगर की सन्धि - 6 फरवरी , 1757 को सिराजुद्दौला ने कलकत्ता के निकट पहुंचकर कलकत्ता पर आधिपत्य करने का प्रयास किया परन्तु उसे असफलता का मुंह देखना पड़ा । अन्त में उसे 9 फरवरी , 1757 को अंग्रेजों के साथ एक सन्धि करनी पड़ी जिसे ' अलीनगर की सन्धि ' कहते है । इस सन्धि की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित थीं ( i ) अंग्रेज विहार , बंगाल एवं उड़ीसा में बिना चुंगी दिये व्यापार कर सकेंगे । ( i ) अंग्रेज अपनी इच्छानुसार कलकत्ता की किलेबन्दी कर सकेंगे ।
( iii ) अंग्रेजों को सिक्का ढालने की अनुमति दी जाए । इसके पश्चात् अंग्रेजों ने चन्द्रनगर की फ्रांसीसी बस्ती पर अधिकार कर लिया । ( 10 ) अंग्रेजों का सिराजुद्दौला के विरुद्ध षड्यन्त्र – अंग्रेज बंगाल पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए दृढ़ - प्रतिज्ञ थे । अतः क्लाइव ने सिराजुद्दौला के विरुद्ध षड्यन्त्र रचना शुरु कर दिया । उसने सिराजुद्दौला के मुख्य सेनापति मीरजाफर को लालच देकर अपने पक्ष में कर लिया । उसे बंगाल का नवाब बनाने का वचन दिया गया जिसके फलस्वरूप उसने अपने स्वामी सिराजुद्दौला के साथ विश्वासघात करना स्वीकार कर लिया । मीरजाफर के अतिरिक्त अमीरचन्द , यारलुत्फ , राजदुर्लभ आदि भी इस षड्यन्त्र में शामिल हो गए । परिणामस्वरूप 1 ) जून , 1757 को अंग्रेजों और मीरजाफर के बीच एक गुप्त सन्धि हुई , जिसकी मुख्य शर्ते निम्नलिखित थीं ( i ) सिराजुद्दौला के स्थान पर अंग्रेजी कम्पनी मीरजाफर को बंगाल का नवाब बना देगी । । ( ii ) मीरजाफर अंग्रेजी कम्पनी को एक करोड़ रुपया युद्ध - हजन के रूप में देगा ।
( iii ) . मीरजाफर ने अंग्रेजों को कलकत्ता एवं कासिम बाजार की किलेबन्दी की अनुमति प्रदान करने का वचन दिया । षड्यन्त्र पूरा हो जाने पर क्लाइव ने सिराजुद्दौला पर अलीनगर की सन्धि का उल्लंघन नका आरोप लगाया । यद्यपि सिराजुद्दौला ने इस आरोप को खण्डन किया परन्तु क्लाइव ने वाब के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने का निश्चय कर लिया ।
प्लासी का युद्ध ( 23 जून 1757 ई . ) - क्लाइव ने 300 सैनिकों के साथ नवान राजधानी की ओर कूच किया । सिराजुद्दौला भी 50 , 000 सैनिकों की विशाल सेना लेकर अं ) का सामना करने के लिए राजधानी से चल पड़ा और प्लासी के मैदान में आ डटा । 23 1757 को प्रातः 9 बजे दोनों सेनाओं में युद्ध आरम्भ हुआ । मीरजाफर तथा राजदुर्लभ अपनी विशाल सेनाओं के साथ दर्शकों की भांति निष्क्रिय खड़े रहे परन्तु मीर मर्दान तथा मोहनलाल नामक स्वामीभक्त सरदारों ने अंग्रेजों का वीरतापूर्वक मुकाबला किया परन्तु अपने विश्वासघाती । सरदारों के कारण सिराजुद्दौला को पराजय का मुंह देखना पड़ा ।
सिराजुद्दौला अपने प्राण बचाने के लिए युद्ध क्षेत्र से भाग निकला । थोड़े दिनों बाद ही वह बन्दी बना लिया गया और शीघ्र ही । सिराजुद्दौला का वध कर दिया गया । | प्लासी की लड़ाई का परिणाम और महत्व 1 . राजनीतिक परिणाम ( i ) प्लासी की लड़ाई में विजय प्राप्त करके अंग्रेजों ने बंगाल पर अपना आधिपत्य कर लिया । यद्यपि बंगाल की गद्दी पर मीरजाफर को बिठाया गया परन्तु वह अंग्रेजों की कठपुतली मात्र था । का मुके 4 . नैति अमीर खरीदा मिला भवि लड़ा आ । 5 4 3 1 2 ( i ) प्लासी की विजय से अंग्रेजी कम्पनी की शक्ति और प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई । अब वह केवल एक व्यापारिक कम्पनी न रह कर राजनैतिक सत्ता हो गई । ( iii ) प्लासी की विजय से अंग्रेजों का मनोबल बढ़ गया । बंगाल से उन्हें जो अपार धनराशि मिली , उसके कारण उनके साधनों में वृद्धि हुई और वे कर्नाटक के युद्ध में फ्रांसीसियों को परास्त करने में सफल हुए । ( iv ) प्लासी की विजय से अंग्रेजों की महत्वाकांक्षाएँ बढ़ गई
। अब उन्होंने शेष भारत को भी अपने अधीन करने का प्रयल शुरु कर दिया । । ( v ) प्लासी की विजय ने मुगल साम्राज्य की दुर्बलता को प्रकट कर दिया । मुगल - सम्राट की आँखों के सामने अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला को अपदस्थ कर अपने कठपुतली मीरजाफर को बंगाल का नवाब बना दिया । ( G ) प्लासी की विजय ने भारत की राजनीतिक दुर्बलता भी प्रकट कर दी । 2 . आर्थिक परिणाम | ( i ) अंग्रेजी कम्पनी को मीरजाफर से अतुल धनराशि प्राप्त हुई । अंग्रेजी कम्पनी को मीरजाफर से 1 , 73 , 96 , 761 रुपये प्राप्त हुए । ( ii ) मीरजाफर ने अंग्रेज अधिकारियों को 12 . 5 लाख पौंड दिये । इसमें से क्लाइव को 294 , 000 पौंड तथा वाटसन को 1 , 17 , 000 पौंड प्राप्त हुए । ( ii ) अंग्रेजी कम्पनी को चौबीस परगने की जमींदारी प्राप्त हुई । इस प्रदेश की वार्षिक आय लगभग 15 लाख रुपया थी ।
| ( i ) अंग्रेजी कम्पनी को बंगाल में कर - मुक्त व्यापार करने की स्वतन्त्रता मिल गई । कम्पनी को पान , सुपारी और तम्बाकू के व्यापार का एकाधिकार भी प्राप्त हुआ । ( v ) अंग्रेजी कम्पनी को कलकत्ता में अपने सिक्के ढालने की स्वतन्त्रता मिल गई । ( i ) प्लासी की विजय के फलस्वरूप अंग्रेजी कम्पनी की आर्थिक दशा अच्छी हो गई । । ( vii ) कम्पनी के व्यापार की अत्यधिक उन्नति हुई३ . सैनिक परिणाम -(1)प्लासी के युद्ध ने भारतीय सैन्य - संगठन की दुर्बलता प्रकट कर दी । अंग्रेजों की एक कोटी - सी प्रशिक्षित तथा अनुशासित सेना ने नवाब पर विजय प्राप्त करके अपने सैन्य - संगठन की श्रेष्ठता सिद्ध कर दी । | ( ii ) बंगाल में बारुद की खानों पर अंग्रेजों का एकाधिकार स्वीकार कर लिया गया जिससे अंग्रेजों का तोपखाना और भी शक्तिशाली हो गया । ( iii ) मीरजाफर की सैन्य शक्ति दुर्बल हो गई । अब वह अंग्रेजों की शक्तिशाली सेना का मुकाबला करने में असमर्थ थी । 4 . नैतिक परिणाम | ( G ) प्लासी की लड़ाई से भारतीयों का नैतिक पतन प्रकट हो गया । मीरजाफर , अमीरचन्द आदि के विश्वासघात से अंग्रेजों को विश्वास हो गया कि धन देकर भारतीयों को खरीदा जा सकता है और इस आधार पर अपने राजनीतिक स्वार्थ पूरे किये जा सकते हैं ।
| ( ii ) अंग्रेजों की कुचक्रों और षड्यन्त्रों द्वारा सफलता प्राप्त करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिला । | ( iii ) अंग्रेजों ने ' फूट डालो और शासन करो ' की नीति की सफलता को देख कर इसे भविष्य में भी अपनाने का निश्चय कर लिया । स्पष्ट है कि प्लासी का युद्ध परिणामों की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण था । प्लासी की लड़ाई ने ही भारत में ब्रिटिश सत्ता की नींव रखी । प्लासी की विजय से अंग्रेजी कम्पनी के आर्थिक एवं सैनिक साधनों में वृद्धि हुई , उनाकी महत्वाकांक्षाएँ बढ़ गई और उन्हें समस्त भारत पर अपना आधिपत्य स्थापित करने को प्रोत्साहन मिला । मीर कासिम का बंगाल का नवाव बनना - 1757 ई . में प्लासी के युद्ध के बाद अंग्रेजों ने मीरजाफर को बंगाल का नया नवाब बना दिया । उसने 1757 ई . से 1760 ई . तक बंगाल में शासन किया ।
मीरजाफर एक अयोग्य और दुर्बल शासक था । उसकी अयोग्यता , अदूरदर्शिता तथा दुर्बलता के कारण राज्य में अशान्ति और अराजकता फैल गई । जब मीरजाफर अंग्रेजों की धन सम्बन्धी माँग पूरी न कर सका तो अंग्रेजों ने मीरजाफर के स्थान पर उसके दामाद मीरकासिम को बंगाल का नवाब बनाने का निश्चय कर लिया । मीरजाफर को 15 हजार रुपये वार्षिक की पेन्शन दे दी गई तथा 20 अक्टूबर , 1760 को मीर कासिम को बंगाल का नवाब बना दिया गया । बंगाल का नवाब बनने के शीघ्र पश्चात् मीर कासिम और अंग्रेजों में मनमुटाव उत्पन्न हो गया और अन्त में 1763 ई . में दोनों के बीच युद्ध छिड़ गया , जिसे बक्सर का युद्ध कहते हैं ।
| बक्सर के युद्ध के कारण 1 . मीर कासिम की महत्वाकांक्षाए - मीर कासिम एक महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति था । उसने बंगाल का नवाब बनते ही स्वतन्त्रतापूर्वक आचरण करना शुरु कर दिया । उसने उन जमींदारों से लगान वसूल किया जो बहुत समय से उसे दबाये बैठे थे । उसने भ्रष्ट अधिकारियों को दण्ड दिया और थोड़े समय में ही अंग्रेजी कम्पनी का बहुत सा ऋण चुका दिया । इस प्रकार मीर कासिम ने भशासनिक कुशलता का परिचय दिया परन्तु अंग्रेज उसका स्वतन्त्र आचरण सहन नहीं कर जी कम्पनी उसकी स्वतन्त्र सत्ता को स्वीकार करने को तैयार नहीं थी । अतः दोनों पक्षों सके । अंग्रेजी कम्पनी उस मैं कटुता बढ़ती गई ।
2 . सैनिक संगठन को दट करना - अंग्रेजों की कुटिल चालों और षड्यन्त्रों से बचने लम द्वित ना सौर कासिम ने मुर्शिदाबाद के स्थान पर मुंगेर को अपनी राजधानी बनाया । उसने मुंगेर क मदद किलेबन्टी की ओर 40 हजार सैनिकों की एक विशाल सेना का गठन किया । उसने मेरे वर्ष इधर में गोला - बारुद तैयार करने का एक नया कारखाना स्थापित किया । मीर कासिम की सैनि तैयारियों से अपेज बड़े चिन्तित हुए और वे मीर कासिम को सन्देह की दृष्टि से देखने लगे । ३ . प्लासी की पराजय का बदला लेना - 1757 ई . में अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला को प्लासी जवाब ! की लड़ाई में पराजित कर दिया था । मीर कासिम इस पराजय से बड़ा दुखी था और इस पराजय इलाहाबा के कलंक को धो डालना चाहता था । डॉ . नन्दलाल चटर्जी के मतानुसार , ' बक्सर के युद्ध का एक । प्रमुख कारण यह भी था कि मीर कासिम प्लासी के परिणामों को ध्वस्त कर नवाब को पुनः उसस शक्तिशाली बनाना चाहता था और कम्पनी को केवल व्यापारिक हलचलों तक ही सीमित रखना । कर लि चाहता था ।
4 . हिन्दू जमीदारों का दमन - विहार का डिप्टी गवर्नर रामनारायण अंग्रेजों का प्रबल सेवा समर्थक धा । मीर कासिम ने उसे गबन के आरोप में बन्दी बना लिया और उसका वध करवा दया । अंग्रेज मीर कासिम के इस कार्य से बड़े नाराज हुए और उन्होंने मीर कासिम की शक्ति पर अंकुश लगाने का निश्चय कर लिया । 5 . व्यापारिक सुविधाओं का दुरुपयोग - 1717 ई . में मुगल - सम्राट फर्रुखसियर ने 300 रुपये वार्षिक कर के बदले में अंग्रेजी कम्पनी को बंगाल में निशुल्क व्यापार करने का अधिकार दे दिया था परन्तु कम्पनी के अधिकारी एवं कर्मचारी इस अधिकार का दुरुपयोग कर हे थे । वे भारतीय व्यापारियों को दस्तक बेच कर भारी लाभ कमाते थे । इस प्रकार अंग्रेजों के अनियमित एवं निःशुल्क व्यापार से मीरकासिम को लगभग 25 लाख रुपये प्रतिवर्ष की हानि हो ( ही थी ।
दिसम्बर , 1761 में मीरवासिम ने तत्कालीन गवर्नर वेन्संटार्ट को एक पत्र में अनियमित व्यापार की ओर उसका ध्यान आकर्षित करते हुए इसे बन्द करने की प्रार्थना की परन्तु इस पर अंग्रेजों ने कोई ध्यान नहीं दिया । विवश होकर मार्च 1763 में मीर कासिम ने व्यापार पर लगाये गए शुल्क को हटा लिया । अब बंगाल के व्यापारी भी अंग्रेज व्यापारियों के समकक्ष बन गए । और उन्हें बिना शुल्क दिये व्यापार करने का अधिकार मिल गया । मीर कासिम की इस घोषणा से अंग्रेज अत्यधिक नाराज हुए और उन्होंने मीर कासिम के विरुद्ध षड्यन्त्र रचना शुरु कर दिया । मीर कासिम तथा अंग्रेजों के बीच संघर्ष - 1763 ई . में अंग्रेजों के एजेण्ट एलिन ने पटना पर अधिकार कर लिया परन्तु मीर कासिम ने अपनी सेना भेजकर पटना पर पुनः अधिकार कर लिया । मीर कासिम को जुलाई , 1763 में बंगाल के नवाब पद से हटा दिया गया और मीरजाफर को पुनः बंगाल का गवर्नर बना दिया गया ।
मेजर एडम्स ने अगस्त , 1763 में मीर कासिम को कटी , गिरिमा , मुर्शिदाबाद , मुंगेर आदि स्थानों पर पराजित किया । अन्त में उदयबाला के युद्ध में मीर कासिम की बुरी तरह से पराजय हुई और उसके 15 हजार सैनिक मार डाले गए । इस पराजय से मीर कास्मि के हदय पर बहुत बड़ा आघात लगा और वह पटना की ओर चला गया । इसके पश्चात् पटना से भागकर मीर कासिम अवध के नवाब शुजाउद्दौला के पास चला गया । ववसर का युद्ध - 17 ( 4 में मीर कासिम , शुजाउद्दौला और शाह आलम द्वितीय को सम्मिलित सेनाओं ने अंग्रेजों से टक्कर लेने के लिए पटना की ओर प्रस्थान किया । दूसरी ओर मेजा मुनरो के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने भी बक्सर की ओर प्रस्थान किया । 23 अक्टूबर 174 को दोनों पक्षों में बक्सर नामक स्थान पर घमासान युद्ध है । दोनों ओर से अनेक सैनिक मारे । गए । अन्त में अंग्रेजों की विजय और सम्मिलित सेना की पराजय हुई ।
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