Friday, July 5, 2019

सामाजिक परिवर्तन एवं कुप्रथाओ का अंत

ब्रिटिश काल में परिवर्तन I , सामाजिक परिवर्तन एवं कुप्रथाओं का अन्त अम पर आधारित जाति - प्रथा के कारण राजस्थान के रामाजिक जीवन में है । इन कप में सत - प्रा , कन्या पकन 3 के अलावा अनेक प्रार र विवरण त है । इनमें से कुछ प्रथा और कया जायचे को पर्म से जोड़ इया गया कि उन प र * द । ब्रिटिश सरकार द्वारा राज्य के राजनीतिक , प्रशासनिक एवं आर्थिक दौर्य में किये गये परिवर्तनों में समाजिक में अत्यधिक महय प्राप्त और सामाजिक जीवन में परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त कर दिया ।

 इसके अति तयप भी राजपूत शरिको ने कुए कुप्रथा त्रिटिश सरकार के निरन्तर या को गैर - कानूनी घोषित कर उन्हें संमत करने का प्रयोग की । उम्परागत जातीय व्यवस्था में परिवर्तन । राजस्थान पर ब्रिटिश आधिपत्य स्थापित होने के बाद , पद्यपि शत - प्रथा का परम्परागत रूप लो ज्यों - का - या भा , लेकिन सामाजिक गतिशीलता आरम्भ हो गयी । निम्नजातियों में यह भवसाग परिव उसतर मात्र के तने में दिखाई पड़ा । राजपूत भी अपने परम्परागत सैनिक कार्यों और भू - स्वामित्र से निकल का रीकीय सेवा यो । - अपनाते जा रहे थे । ब्राह्मण जो अध्ययन - अध्यापन करते थे , वे भी अब अधिकाधिक कृषि पर निर्भर हो गये । व है अब प्रशासनिक एवं सैनिक पद संभालने लगे । तेरी , पोयी , म्हार , झाती और इरिजनों को कर अन्य सभी | F ने अपने प्यवराय यदल लिये ।

 इस रामाजिक गतिशीलता के प्रमुख कारण शासको ५ मन्त्रों को रोनाओं को | परन मोर यागिन्य पर अंग्रेजों की बढ़ता हुआ नियंत्रण भूमि बन्दोबस्त , यातायात के सपनों का विकास , प्रशीनिक दिन में परिवर्तन , अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार आदि थे । स्वामी दयानन्द सरस्वती का राशन में आगमन परम्परा नक्क ढाँचे को झकझोरने वाला सिद्ध हुआ । घकालीन कुप्रथाओं का अंत । | सती प्रथा का अन्त । लीप रक्त की राद्धता और प्रतिष्ठा को मध्यकालीन असुरक्षित तारण में सुरक्षित रखने । तर रायपूतों में सती प्रथा का प्रचालन सर्वाधिक मा तरा इसने पार्मिक स्वरूप ग्रहण कर लिया । हिन्दुओं को कुछ द शिया में भी पाए प्रधा कप्त मात्रा में प्रचलित थी । राजस्थान में सर्वप्रथम सती प्रथा पर रोक लगाने का प्रयास र के महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय के द्वारा किया गया । 19ीं शताब्दी के आर में इस प्रथा को ध्यापकता कम होती जा रही थी ।

 जयपुर में सगाई जगतसिंह की 1818 मन्यु होने पर केवल एक रानी सती हुई थी । उदयपुर में महाराणा भीमसिंह को मृत्यु पर 1828 ई . में 4 रानियां , 4 और 1838 में अमानसिंह की मृत्यु पर केवल 1 उपासन से 1861 में महाराणी रूपसिंह की मृत्य पर न एक दासी को सती होने के लिए तैयार किया जा सका । जापपुर में 1803 ई . में महाराजा भीमसिंह को मृत्य पर 8 २ सी हुई होकिन् 1843 ई . में मानसिंह को मृत्यु पर केवल एक रानी सती हुई । बीकानेर में 1825 है , जोधपुर में1846 ई . में , जोधपुर मह में , ३गरपुर गरे । महारा महाशा स्वरूपसिंह ने 186 ठिकानों में से प्रथा को में तो घा उल्लंघन करने पर जुर्माना वसूल करने की को पुट घटनाएं होती - - है , अभने के गम त अधिकारियों के सहयोग से राजस्थान राज्यों में जो प ? ए थीन का इतिहास , म एव । एक पर " " ५ ५ . के पर कोई शो सो महीं हुई । इस प्रकार मधेश स्या : हो ।

 * में राजस्थान में सर्वप्रधम सती प्रथा को दी जोश राव विष्णु रिहा ये 1st में 11875 ई . में बीकानेर में , अलवर नरेश भएका प1ि830 रिपुर नरेश भारत इशरदह ने 1844 में , अपुर । 1816 में जोधपुर महाराजा में विवाह भरा सोसर हि एवं कश महारावन माह 1845 ई . में 86 ई . में तो प्रा से गैरकानुनी ति का दण्डनीय अपराध मरा दिया । इस पर Fषु रमाए होती हो जिसके लिए उमेशरों पर उमा शमा शा भा । रे * नपर्म मी घसूस करने करने की सपना को १ की गई । 1851 में अ५ अर रात ५ सपना भितने घर कारागार का इण्ड दिए । सर को पद र त । और उप में म त के र हा कयी । इ स ५ ५ पा की घटनाए कैच ६ मत्र र आयी । ६ अना : कन्या - वर्ष की प्रा राजस्थान में राजपूतों में मि ! मशि में प्रथतिः । ग्री के छोटे - छोटे कद में मैं - वध का कारण बताया है ।

 राजपताना के ए . जी . जी . सदरलैण्ड और जोधपुर के पॉलिटिकल एजेन्ड आगे और अपनी पुश्यों के लिए उचित दर देरे में अ । | भी पामेलदार ने रोके की प्रत को कन्या - वध के लिए दोषी ठहराया है । स में - राजस्थान पर ब्रिटिश प्रभुत्व स्थापित होने के बाद हौती के पोलिटिकल एजंट बिलकिसन के अधप्रधम 153 ई . में कन्वा पप को गैर कानन पौषित करने वाला शासक कोटा महपाय IT | १३ में वि सिंह ने 1834 में और महाराण इतनसंह ने 1877 I में तपी उदयपुर महाराणा स्वरूपसिंह ने 1544 है में काध को गैर - कानूनो पोषित कर दण्डनीय बना दिए । में , उपपुर मग मी किनेर मेराजा रतनसिह ने 1836 ई . में अपने सभी कामों औरण बाकीदार की रात में आयोजित कर पद दिलायी थी कि वे अपनी बेटी का वध नहीं करेंगे , परन्तु उदयपुर पराना पिक परम्परा है . र कारण कुरीतियों के विरुद्ध स्वयं को दो तैयार न कर सका ।

लेकिन यह ध्यान तो उस समय सम्म हो ही आज समाप्त हुई है । । त्याग प्रथा को नियमन । राजपूत जाति में विषाह के अवसर पर प्रदेश के दूसरे राज्यों में धारण आदि धमकते थे और लड़की बातों से मुंह मांगी दान - दक्षिण प्राप्त करने का आ करते थे । इसी । ' त्याग ' कहा जाता था । इससे सड़को पालों की स्थिति काफी दयनीय हो जाती थी । इस ' त्याग ' को मन - के लिए प्राय : उत्तरदायी रहा । आ र । इलिए ब्रिदिश अधिकारियों ने शासकों के सहयोग से इस मन करने के लिए आवश्यक कदम उराश्ये । सर्वपम 1931 में त्याग प्रथा को गैर - कानो पोषित करने । महाराजा मानसिः । शत्पश्चात् बीकानेर महाराजा रतनसिंह में 1544 १ में , जयपुर महराया रामसिंह 1 । महाराणा स्वरूपसिंह में भी पाग १८ को 1 $ 44 ई . में नियमित कर दिया ।

 डाकन प्रधा का अन्त : राजस्थान में अनेक जातियों , विशेषकर भौल व मीणा जातियों में त्रिों पर कर । का आरोप लगाकर उनकी हत्या कर देने की कृपा प्रचलित पी । 1853 ई . में जय ' भेवाह स कोर के । एक स्त्री को ज्ञान होने के सन्देश में भी डाली तय कालीन ए . जी . सी . में भारत सरकार ने इन प्रणाम हेतु आवश्यक कार्यवाही करने की स्वीकृति माँगी । भारत सरकार ने एजी को निर्देश दिया कि कपूर । को अपने - अपने राज्य में इसे कुपी को गैर - कानूनी घोषित करने के लिए विवश की और इस त में लिए । के विरुद्ध संत सज्ञा की स्थिी करें ।

 सर्वप्रथम औरवाड़ा ( उदयपुर ) में महाराणा स्वरूपसिंह ने मेवाड़ भील कोर के कमाडेर जे सी इक । । प्रयासों से अम्बर , 1853 में क पा को गैर - कानूनी घोषित कर दिया और इसका पर सर । कारावास की सजा देने की घोषणा की । फिर भी य में यह कुप्रथा समाप्त नहीं हुई । जापाचा कोश शरण । जसपर महाराजा सवाई रामसिंह द्वितीय एवं पूदी महाशय वारिनेह ने भी ज्ञान प्रा को गैर - कागदी घोषित ॥ किन्न । यो शताब्दी के अन्त तक यह भी स्मापा नहीं हुई । 20वीं शताब्दी में अंग्रेजी शिक्षा के प्रारद से | समाप्त हो सकी । अभी भी इस प्रकार की घटनाएं घटती होती रहती हैं ।

1857 का विद्रोह

1857 का विद्रोह : राजस्थान के संदर्भ में न के राज्यों में अंग्रेज कंपनी के साथ सधियाँ ( 1818 ई । करके मराठों द्वारा उत्पन्न अराजकता से मुक्ति प्राप्त है । इप्य को मा सुरक्षा के बारे में भी निश्चित हो गए , क्योंकि अय कम्पनी ने उनके राज्य को थाहरी आक्रमणा से इमेदारी भी ले स । परन्तु पिया में उल्लेखित शतों को कम्पनी के अधिकारियों ने जैसे ही क्रियान्वित करना - कम्पनी ने राज्यों के आन्तरिक मानों  में उप की नों की प्रभा पर पोट को एवं उनका * के सामन्ती । जागीरदारों जैसी हो गई । कभी की नीतियों से रमन्तों की पद मर्यादा व अधिकारी को भी | मनी द्वारा अपनाई गई आर्थिक नीतियों के रिमयप राजा , मंत्र , किसान , ब्यापारी , शिल्पी एवं मन गरी पशि हुए । राजस्थान में टिश आधिपत्य के परिणामस्वरूप शारकों को पता ॥ रामाप्त हो गयी ,

 राज्य फा दरा इदार हो गयी प्रश्न में अष्टाचार , शासकों के भोग - विलास में वृद् ि , सामन्त की पद मदा को ण करने की नों पर पारय विपार एवं संस्कार गोपने तथा उनके परम्परागत रीति - रिवाजों को समाप्त करने , ई पर्म प्रचार नीति त रामाजिक सुधार आदि की जनता ने अपने धर्म । जीवन में और तप माना । इस प्रकार सम्पूर्ण राजस्थान में 3 5 में ब्रिटिश विरोधी भावना व्याप्त थी , इसलिए यहाँ भी विद्रोह का शुभारंभ हुआ । | 1857 के विद्रोह के समय राजस्थान में 6 ब्रिटिश शानियां थी जो इस प्रकार थी -

 1 . संगाल नेटिव - उमरियाद , मेरा चैटालियन - व्यावर , 3 . कोय कलिन्टि - देवली , 4 , मेवाड़ भीलकोर - खैराड़ा , 5 . जोधपुर इन - रिनपुरा और 6 , मीमच छावनी - नीमच । इस समय 4 पॉलिटिकल एजेंट थे 1 , मॉकमैरन - मारवाद , 2 . मेजर - - मेगा ३ . कर्नल ईडन - जयपुर और 4 . मेजर बर्टन कोय । राजस्थान का ए . जी . ओ . पैट्रिक लोरेन्स था एवं रिट का सात साई केनिंग था । विद्रोह की शुरुआत एवं प्रसार । 1757 ई . में प्लासी की लड़ाई और 1857 के विद्रोह के घीच ब्रिटिश शासन त में अपने एक सौ वर्ष पूरे कर लिए थे । भारत में ब्रिटिश शासन के प्रथम सौ वर्षों में कई बार ब्रिटिश सत्ता को उंच से चुनौती मिली जिसमें अनेक असैनिक , स्थानीय बगावते शामिल थी ।

 इस समय के अधिकांश दोसन ब्रिटिश के प्रति व्यापक असंतोप तथा व्यक्तिगत शिकायतों के कारण हुए । भारत में अंग्रेजी नीति के विरुद्ध पनप रहे । = का शासक वर्ग को पूर्वाभार हो चुका था । इसलिए कालीन भारतीय गवर्नर जनरल नाई केनिंग ' ने यह { की थी कि ' हम पर कदाचित नहीं भूलना चाहिए कि भारत में इसे राति आकाश में कभी भी एक * अटी आपन हो . कृती है जिसका आकार पहले तो मनुष्य को हथेली से धड़ा नहीं होगा , किन्तु को उत्तरोत्तर द रुप धारण करके अंत में वृष्टिविस्फोट के द्वारा हमारी बर्बादी का कारण बन सकती है । ' | इयाँ लगे कारतूसों के प्रयोग को 1857 के विद्रोह का छात्कालिक कारण माना जाता है ।

 कैनिंग सरकार ने 1857 ३नकों के प्रयोग के लिए ' नाउन बैर ' के स्थान पर ' एनफील्ड रायफल ' का प्रयोग शुरू करवाया जिसमें कारतूस से में पूर्व दांत से चर्ष का खोल उतारना पटुता भी , चूकि कारतूस में गाय और सुअर दोनों की चप लगी थी इसलिए और मुसलमान दोनों भड़क उठे , परिणामस्वरूप 1857 के विद्रोह की शुरुआत हुई । | प वाले कारतूरों की पहली घटना 29 मार्च , 1857 को बैरकपुर की छावनी में घटी जहां 34थीं रेजीमेंट के मत पारडे नामक एक सिपाही ने घब लगे कारतूस के प्रयोग से इंकार करते हुए अपने अधिकारी लेफ्टिनेंट बाग औरनराधार में 15 और 10वीं , नसीराबाद का विद्रोह : राजस्थान में की जा अपम्भ शपथ हांसर के मोनिक विमान । । ३8 HIN57 की । मटी इपी भारतीय पाने की इन्ट्री के सैनिकों ने दिन के 3 बजे विद्रोह की शुरुआत कर तोपखाने पर अधिकार कर लिया ।

 अंग्रा मेजर प्रिया हो । कार्यवाही करने का आदेश दिया निको नय नरोराबार छावनी में मर सियारियों को । मेयर पाटिस तोप को र आग मानने से इन्कार कर दिया । कयल म्यांसर्स पेटों । अफादार नल न्यारी । दुफ कर दिया । कि बा गोली लगने से वा गिर गया राम उराको मृत्यु हो गयी । आँश ३ लेफ्टनंट कि वे कप्तान हा घरी से पह गये । मीर - पार भी सैनिक विदा हो गये । मेरा मी ती पीजर को टने के बाद नगर टिका आपकारियों एवं उनके परिवारों की रा । जसबाई विदाही सैनिक दिल्ली के लिये कुच कर गये । 18 जून 1857 की ये सैनिक दिल्ली पाथे तथा उन्होंने उसे अंग्रेज पर पर पीछे से आक्रमण किया को दिल्ली का घेरा डाले हुए थी । इ । पुः ॥ अग्रेज सेना हार गयी । दिन में धादि । पपी जा । जफर को हिन्दुस्तान का बादशाह बनाया गया था उसने विही सैनिको यः जाम फरमान जारी किये ।

 अंग्रेज अधिकारियों को जोधपुर आने का निमंत्रण दिया । इस पर अंग्रेज आपकारी अपने परिवारों के साथ जोधपुर आ गई । कर्नल पेनी ' का मार्ग में दिल का दौरा पड़ने से निपन हो गया । भीमच विद्रोह : नसीराबाद के बाद क्रान्ति कौ अनि नीमच में भी प्रज्वलित हुई । 3 जून 1857 को रात्रि 11 । भारतीय सैनिकों ने विद्रोह कर दिया । उन्होंने तोपड़ने पर अधिकार करके धनी को पर लिया हमें अग त । हरे । समय पर आयो कि मेकाह पॉलिटिकल एट कप्तान शर्म घडला व राव बसि के नेतृत्व में सेना तैकर नीमच आ । है । इस पर विद्रोही सिपापों ने लूट का माल लेकर चैट वाते हुए अपनी से पाच किंम । इन सिपाहियों ने देखी परंप का ! चहीं भी छाननी को लट । यह से विद्रोही सिपाही रोक तथा व ए दिल्ली पहुंचे और दिल्ली के कारणों से मिलकर अर्पण सेना पर आक्रमण किया ।

 शावर्स को रापता के लिए भेया को ए . जर्ज सरन्स भी आ गया कि राय । तक क्रांतिकारी दिल्ली के लिये पाच पा चुके थे । भीमथ के लगभग 40 ऐन , जिनमें औरत व १ मिति में इधर - उधर जंगल में भटक , भूखे - प्यासे और भयभीत एवं आतकित हुए गला गांव में पहुचे हा गामि नामक एक किरन ने उन्हें शरण दी थी । आतंककारी भी उनका पीछा करते हुए यह पाचे , परन्तु इस बीच पॉलिटिकल एजेन्ट शश । मेराही कोना के शाप दूला पहुंच गया । उसने इन अंग्रेग औरतों में धयों को सुरति उदयपुर पहुंचा दि । महाराणा ने उसे पिछोला झील में बने जगमंदिर में ठहराया और राज्य की ओर से उनकी सुरक्षा का कड़ी प्रबंध किया गया । आउवा का विद्रोह । एरिनपुरा स्थित अंग्रेज छावनी में जोधपुर - लीजन का सदर मुकाम था । लीडन में 600 पुसवान । और 1400 पैदल सैनिक थे । इस सीजन के 90 सैनिक अभ्यास हेतु माउण्ट आ गये हुए थे । माउण्ट आयु , जी । ग्रीष्मकालीन मुकाम था ।

 23 अगस्त , 1857 को जोधपुर - लोजन ने फेटार मोती खों और सुदार शीतल प्रसाई छ । तितकर्म के नेतृत्व में विद्रोह का बिगुल बजा दिया । थे क्रान्ति के नेताओं के आदेशानुसार चलो दिल्ली मारी फिरंगी ' के नारे लगाते हुये दिल्ली की ओर चल पड़े । राह में उनका मुकाम आउया में हुआ । हाँ के ठार कुसिह धामा में कातिकारी नी का भ रना स्वीकार कर लिया । आरोप , आलनियावास , गतर , लाम्बा , पताधारी और दान के जागीरदार भी अपनी - अपनी सेना के साथ क्रान्तिकारियों से आ मिले । ठा . कशाला में मेवाड़ के मनाम्य आर कोरिया आदि शारदारों को भी क्रोति में शामिल होने का आहान 1कया । इन जागीरदारों की कातिकारियों के साथ । सहानुभूति , पर पह सहानुभूति सक्रिय सहयोग में नहीं बदल सकी । हो सकता है इन गीर ने तिकारियों को । रस्पद में नकद से थोड़ी बहुत सहायता की हो । जी हां क्रांतिकारी सेना की रंगी ; हजार तक पतंभ । राजपूताना के ए . जी . लॉरस को अब आशा में क्रांतिकारी सैनिकों के जमात का पता चला तो उसने पिपुर । महाराश ताहि फो क्रान्तिकारियों को केलने के लिये लिखा । जोधपुर के महाराजा तखतसिंह ने अपने का ।