असहयोग आंदोलन के उदय के कारण
आरम्भ में गांधी जी ब्रिटिश शासन के प्रशंसक एवं उदारवादी थे । प्रथम विश्व - युद्ध के दौरान महात्मा गांधी ने भारतीय जनता से ब्रिटिश सरकार के साथ पूरा - पूरा सहयोग करने की अपील की थी । उनकी अपील का भारतीय जनता के द्वारा पूरे उत्साह से जवाब दिया गया परन्तु युद्ध के पश्चात् ब्रिटिश सरकार के विश्वासघातों , उसकी दमनकारी नीति और भारतीय भावनाओं के प्रति उसकी उदासीनता ने गांधीजी को सहयोगी से असहयोगी बना दिया । रौलट एक्ट , जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड , खिलाफत का प्रश्न आदि घटनाओं ने गांधी जी को असहयोगी बना दिया ।
अत : महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन के माध्यम से ब्रिटिश शासकों का हृदय - परिवर्तन करने का निश्चय कर लिया । गांधी जी की अहिंसा एवं सत्याग्रह में अटूट आस्था थी । वे चम्पारन , खेड़ा और अहमदाबाद में सत्याग्रह के सीमित प्रयोग कर चुके थे । 1920 में गांधी जी ने राष्ट्रीय स्तर पर असहयोग - आन्दोलन करने का निश्चय किया । असहयोग आन्दोलन के कारण ( 1 ) प्रथम महायुद्ध में ब्रिटेन का सहयोग – कांग्रेस और समस्त भारतवासियों ने प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों को तन - मन - धन से सहयोग दिया था क्योंकि उन्हें आशा थी कि युद्ध के पश्चात् उन्हें काफी हद तक राजनीतिक अधिकार प्रदान किए जायेंगे किन्तु युद्ध के बाद सुधारों की बात तो दूर रही वरन् भारतीयों का दमन करने के लिए कठोर व आतंकवादी कानून लगाये गये ।
परिणामस्वरूप सहयोग देने वाली जनता को असहयोग करने के लिए मजबूर होना पड़ा ।( 2 ) राष्ट्रवादियों का दमन युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार भारतीयों का सहयोग प्राप्त कर रही थी वरी पद के पश्चात् भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का हर प्रकार से दमन करने का प्रयास किया गया । सरकार ने प्रेस अधिनियम और राजद्रोह एक्ट पारित किये जिनका उद्देश्य राष्ट्रवादियों का दमन था । पंजाब व बंगाल में राष्ट्रवादियों पर भयंकर अत्याचार किए गए और उनके साथ अमानुषिक व्यवहार किया गया । ( 3 ) निरन्तर बिगड़ती आर्थिक स्थित महायुद्ध के दौरान ब्रिटेन की ओर से लड़ने के लिए जो सेना बाहर गयी थी?
उस पर किये गये करीब 150 करोड़ रुपये व्यय की राशि का भार भारत सरकार को उठाना पड़ा । परिणामस्वरूप भारत की आर्थिक स्थिति बहुत ही दुर्बल हो । गयी । आवश्यक वस्तुओं का बाजार में अभाव हो गया और उनके भाव एकदम ऊंचे चढ़ गये । पूँजीपतियों ने काला बाजारी करके करोड़ों - अरबों रुपये कमाये । सरकार ने साधारण जनता को महँगाई से राहत दिलवाने के लिए कार्यवाही करना तो दूर वरन टैक्स की संख्या में मात्रा में भारी वृद्धि कर जनता पर भारी आर्थिक बोझ डाल दिया जिससे उनकी कमर टूट गयी । पूँजीपति और सरकार दोनों जनता का आर्थिक शोषण करते रहे ।
| ( 4 ) प्राकृतिक विपदाएँ - 1917 में वर्षा न होने के कारण देश में भयंकर अकाल पड़ा । और प्लेग व इन्फ्लुएन्जा जैसी महामारियां फैतीं । भारत सरकार ने इन प्राकृतिक विपदाओं की रोकथाम के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए । इस उपेक्षापूर्ण नीति के कारण भारतीयों में रोष व असन्तोष की भावना उभरी । । | ( 5 ) अंग्रेजों की सैन्य भर्ती नीति - युद्ध के दौरान सेना में भारतीय सैनिकों की जबरदस्ती । प की गयी । गांवों में प्रत्येक परिवार से 2 - 3 व्यक्तियों की सेना में भर्ती अनिवार्य कर दी गयी । इससे जनता में असन्तोष जागृत हुआ । इसके विपरीत जब युद्ध समाप्त हो गया तो बड़ा संख्या में सैनिकों की छटनी कर दी गयी ।
बहुत से लोग बेरोजगार हो गए । इससे सरकार का संकीर्ण और स्वार्थी प्रवृत्ति जनता के समक्ष उजागर हुई और वह अंग्रेज सरकार के साथ असहयोग करने के लिए तैयार हो गयी । । ( 6 ) माप्टफोर्ड घोषणा से रािशा - भारतीयों को यह आशा थी कि युद्ध के पश्चात् ब्रिटिश सरकार उन्हें कुछ न कुछ मात्रा में राजनीतिक सुधार व अधिकार प्रदान कर माण्टफोडे घोषणा से भारतीय जनत , में निराशा व्याप्त हो गयी क्योंकि केन्द्रीय सरकार १२ भांति अनुत्तरदायी बनी रही और प्रान्तों में उत्तरदायी शासन की स्थापना नहीं की गयी ।
( 7 ) लिट एक्ट 1919 - दिसम्बर 1919 में विटिश सरकार ने भारतीय क्रा के आन्दोलन से सम्बन्धित आरिपूर्ण षड्यन्त्रों के कार्यकलापों की रिपोर्ट देने एव । की जाने वाली कार्यवाहिय र कानूनों की रूपरेखा बनाने के लिए जस्टिस रासदी किया ८ प्रतिक्रिय नेताओं जागृति । डॉ . किच गया । स पूर्णतः शा पूरा जुलून में जो भी को लूट सार्वजनिट अमृतसर शहर में 3 करने , एक की कोई = आयोजित एक ही थे गये ।
इस सभा की । निकलने । बरसाने के हजार लो गोला - बार अनुमति = को रिपोर्ट देने एवं उनके विरुद्ध जस्टिस रोलट की अध्यक्ष ५ किया गया और इसकी गया था कि भारत का वर्तमान गया । पंज कर दिया मुकदमा = गयी । लो भारतीयों थी । इस ( लए अप्यप्ति है । में एक समिति की नियुक्ति की । इस समिति का सम्पूर्ण भारत में विरोध किया । रिपोर्ट को अत्यन्त प्रतिक्रियावादी कहा गया क्योंकि इसमें कहा गया था कि फौजदारी कानून क्रान्तिकारियों की गतिविधियों का सामना करने व अतः दो नये कानुन बनाये जाने चाहिए ।
इस समिति की रिपोर्ट अप्रैल अरि इसके आधार पर 18 मार्च , 1919 को गया जो रौलट एक्ट के नाम से प्रसिद्ध है । इस एक्ट के अनुसार में आतंकवादी और अफ कि वे संदिग्ध क्रान्तिकारियों को बिना माकूल जाँच पड़ता दश जारी कर सकते थे । इस एक्ट की कांग्रेस और समस्या ८ अप्रैल 1918 में प्रकाशित हुई । ६ र अराध अधिनियम पारित के अनुसार मजिस्ट्रेटों को यह अधिक की ओर सरकार ने हेतु एक व डायर ने तीव्र भत्र्सना की और इसका विरोध किया गया( 8 ) जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड - एक ऐसा भीषण हत्याकांड जो अंग्रेज सरकार ने किया था , जिसका अन्यत्र उदाहरण दर्लभ है ।
पंजाब का गवर्नर माइकल ओ डायर अत्यन्त प्रतिक्रियावादी और भारतीयों से घृणा करने वाला व्यक्ति शा । सरकार ने गांधीजी सहित सभी । नेताओं के पंजाब प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया । तनाव व असन्तोष के बावजूद •पंजाब में जागृति बनी रही । 10 अप्रैल , 1919 को पंजाब के अत्यन्त लोकप्रिय नेताओं डॉ . सत्यपाल अरि डॉ . किचलू के अमृतसर से निष्कासन के आदेश जारी कर दिए गये और उन्हें नजरबन्द कर दिया गया । सरकार की इस कार्यवाही के विरोध में अमृतसर में एक विशाल जुलूस निकाला गया जो पूर्णतः शांत और व्यवस्थित था फिर भी एक स्थान पर पुलिस ने जुलूस पर गोली चला दी ।
इससे पूरा जुलूस भड़क उठा और जनता ने उत्तेजित होकर हत्या , आगजनी और लूटमार मचा दी । मार्ग में जो भी यूरोपियन स्त्री - पुरुष मिले उन पर हमला कर दिया गया । नेशनल बैंक व एलाइन्स बैंक को लूट लिया गया और उनके युरोपियन मनेजरों को मार डाला गया । टाऊन हाल व अन्य सार्वजनिक भवनों व सम्पत्ति को नष्ट किया गया और टेलीफोन के तार तोड़ दिये गये । सरकार ने अमृतसर का शासन सेना को सौंप दिया और जनरल डायर ने सारा काम सम्भाल लिया ।
सेना ने शहर में अन्धाधुन्ध गोलियां चलाई जिससे कई लोग मारे गये । 12 अप्रेल को सार्वजनिक सभा करने , एकत्र होने व जुलूस निकालने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया किन्तु इसकी सूचना पहुंचाने की कोई व्यवस्था नहीं की गयी । | 13 अप्रैल , 1919 को वैसाखी के दिन जलियांवाला बाग में सार्यकाल एक आम सभा आयोजित की गयी । जलियांवाला बाग हालांकि काफी लम्बा चौड़ा था किन्तु उसका प्रवेश मार्ग एक ही था और वह भी अधिक चौड़ा नहीं था । लगभग 20 हजार लोग इस सभा में एकत्रित हो । गये । इस सभा को होने से पहले ही रोकने का कोई प्रयास सरकार द्वारा नहीं किया गया ।
जब सभा की कार्यवाही आरम्भ हो गयी तो जनरल डायर 150 सैनिकों के साथ वहां आया और बाहर निकलने वाले मार्ग को रोक कर मोर्चा लगाकर बिना किसी पूर्व चेतावनी के भीड़ पर गोली बरसाने के आदेश दे दिए । बन्दूकों व मशीनगनों से हजारों गोलियां दागी गयी । करीब एक हजार लोग इस हत्याकांड में मारे गये । यह गोली वर्षा तभी रुकी जब सैनिकों के पास गोला - बारुद समाप्त हो गया । पूरी रात घायल व्यक्तियों को वहां से हटाने या ले जाने की । अनुमति नहीं दी गई । अमृतसर में इस हत्याकांड के पश्चात् सम्पूर्ण पंजाब में सैनिक शासन लागू कर दिया गया । पंजाब की जनता पर अंग्रेजों ने मनमाने अत्याचार किये । अमृतसर के नलों में पानी बन्द कर दिया गया और बिजली काट दी गयी । सैकड़ों लोगों को पकडकर सैनिक अदालतों में मुकदमा चलाया गया । जिनमें से 51 को फांसी और 46 को आजन्म कारावास की सजा दी गयी ।
लोगों पर भीषण अत्याचार किए गए , उन्हें गलियों व सड़कों पर पेट के बल चलाया गया । भारतीयों पर लाठी बरसाना , मारना - पीटनी , शारीरिक यंत्रणा देना अंग्रेजों के लिए मामूली बातें थी । इस भीषण हत्याकांड का सम्पूर्ण भारत पर विस्तृत और गहरा प्रभाव पड़ा । | ( 9 ) हन्टर कमटी की रिपोर्ट - एक अन्य महत्त्वपूर्ण घटना जिसने गांधीजी को असहयोग की ओर बढ़ाया वह थी हन्टर कमेटी और उसकी खोखली व पक्षपातपूर्ण रिपोर्ट । ब्रिटिश सरकार ने जलियांवाला बाग की घटना से भारतीयों में उत्पन्न रोग व विरोध के कारणों की जांच तु एक कमेटी की नियुक्ति की थी जिसके अध्यक्ष लाई हण्टर थे ।
इस कमेटी के समक्ष जनरल या ने बयान देते समय अपने कार्य के प्रति स्वयं की कोई त्रुटि महसूस नहीं की बल्कि स्वयं को यान्वित महसूस किया । इस कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया कि माइकल डायर दोषी नहीं है ।बल्कि कहा गया कि उसने नेक नीयत से उचित कार्यवाही की , हालांकि परिस्थितियों को समझने में उससे कुछ गलती हो गयी होगी । इण्डेम्निटी बिल ' पारित कर इन अधिकारियों को किसी भी प्रकार के दण्ड से बचा लिया गया । इस कमेटी की रिपोर्ट में एक प्रकार से हत्याकाण्ड की लीपा - पोती की गयी । यह कमेटी अंग्रेजों की बद - नीयति का स्पष्ट प्रमाण थी । | ( 10 ) खिलाफत की समस्या - टर्की का सुल्तान विश्व भर के मुसलमानों का धार्मिक नेता ( खलीफा ) माना जाता था । प्रथम विश्व युद्ध में टर्की ब्रिटेन के विरुद्ध जर्मनी की ओर से युद्ध कर रहा था ।
अतः भारतीय मुसलमानों ने मांग की कि वे ब्रिटिश सरकार की सहायता इस शर्त पर ही करेंगे कि युद्ध की समाप्ति के पश्चात् इंग्लैंड टर्की के प्रति प्रतिशोध की नीति नहीं अपनाएगा और उसके साम्राज्य को छिन्न - भिन्न नहीं होने देगा । ब्रिटिश प्रधानमन्त्री लायड जार्ज ने इस मांग को मान लिया ब्रिटिश प्रधानमंत्री के इस आश्वासन पर मुसलमानों ने युद्ध में अंग्रेजों की पूरी सहायता की किन्तु युद्ध समाप्ति के बाद 1920 में टर्की के साथ सीवर्स की सन्धि की गयी जिसमें उपर्युक्त आश्वासन की पूर्ति नहीं की गयी और टर्की साम्राज्य का विघटन कर दिया गया । टर्की में एक हाई कमिश्नर नियुक्त किया गया जिसे वास्तविक शासन की शक्ति दी गयी । सुल्तान केवल नाममात्र का शासक रह गया ।
खलीफा का पद सुल्तान से छीनकर मक्का के हाकिम शेख हसन को दे दिया गया , जो अमेज़ों का कृपा पात्र था । । विटेन के इस विश्वासघात के विरोध में भारतीय मुसलमानों ने खिलाफत आन्दोलन चलाया । इस आन्दोलन के समर्थकों की मांग थी कि टर्की के साम्राज्य का पुनर्निर्धारण किया जाए और मुस्लिमों के आध्यात्मिक नेता के रूप में खलीफा का पद बनाए रखा जाए । गांधीजी इस खिलाफत आन्दोलन के समर्थक थे और इसे हिन्दू - मुस्लिम एकता बढ़ाने के लिए स्वर्णिम अवसर मानते थे । 19 जनवरी , 1920 को डॉ . अन्सारी के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल वायसराय चेम्सफोर्ड से मिला लेकिन कोई फल नहीं निकला ।
मौलाना मोहम्मद अली के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल इंग्लैंड भी गया किन्तु उसे अपने उद्देश्य में कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई । शिष्टमण्डल निराश होकर भारत लौट आया । गांधीजी ने खिलाफत आंदोलन में मुस्लिमों का समर्थन किया । और ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन चलाने का निर्णय लिया । असहयोग आन्दोलन के उद्देश्य असहयोग आन्दोलन के उद्देश्य मुख्यतः दो थे ( 1 ) शान्तिमय एवं अहिंसक उपायों से स्वराज्य प्राप्त करना , ( 2 ) ब्रिटिश भारत की जो भी राजनीतिक , सामाजिक और आर्थिक संस्थाएँ हैं उन सब का बहिष्कार कर दिया जाए और इस प्रकार सरकार की मशीनरी को बिल्कुल ठप्प कर दिया जाए ।
असहयोग आन्दोलन का कार्यक्रम असहयोग आंदोलन का कार्यक्रम निम्न प्रकार से निश्चित किया गया ( 1 ) सरकारी उपाधियों और अवैतनिक पदों का त्याग किया जाये । ( 2 ) स्थानीय संस्थाओं के नामजद सदस्य त्यागपत्र दे दें । ( 3 ) सरकारी दरबारों , उत्सवों और भोजों में शामिल न हुआ जाए । ( 4 ) सरकारी और अर्द्ध - सरकारी स्कूलों एवं कॉलेजों का बहिष्कार किया जाये । ( 5 ) सरकारी न्यायालय का धीरे धीरे बहिष्कार किया जाए । ( 6 ) विदेशी माल का बहिष्कार किया जाये तथा स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग किया जा ( 7 ) सैनिकों , क्लर्को तथा मजदूरों द्वारा मेसोपोटामिया के लिये अपनी सेवायें न दी जाये।( 8 ) 1919 के अधिनियम के अन्तर्गत होने वाले चुनाव का बहिष्कार किया जाए ।
इन सब कार्यक्रमों का उद्देश्य सरकारी नौकरियों , कौंसिलों , न्यायालयों , स्कूलों तथ कॉलेजों का बहिष्कार था । इसके अतिरिक्त कार्यक्रम का सकारात्मक पक्ष भी था , जिनमें निमः । बातें मुख्य थी ' ( 1 ) राष्ट्रीय स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना , ( 2 ) पारस्परिक विवाद तय करने के लिए जनता की पंचायतों की स्थापना की जाये , ( 3 ) बड़े पैमाने पर स्वदेशी का प्रचार , ( 4 ) हाथकरघा एवं बुनाई उद्योग का जीर्णोद्धार , ( 5 ) हिन्दू मुस्लिम एकता को सुदृढ़ करना , तथा | ( 6 ) अस्पृश्यता का अन्त । । असहयोग आन्दोलन की प्रगति कलकत्ता अधिवेशन के पश्चात् गांधी जी ने सारे भारत का दौरा कर असहयो आन्दोलन का प्रचार किया ।
गांधी जी की अपील पर स्थान स्थान पर हजारों विद्यार्थियों द्वार सरकारी स्कूलों एवं कॉलेजों का बहिष्कार किया गया । अनेक राष्ट्रीय शिक्षण - संस्थाओं के स्थापना की गई , जिनमें काशी विद्यापीठ , गुजरात विद्यापीठ , बिहार विद्यापीठ , तिलक महारा । विद्यापीठ , बंगाल नेशनल विद्यापीठ , मुस्लिम विद्यापीठ , अलीगढ़ - नेशनल कॉलेज , लाहौर । जामिया मिलिया , दिल्ली इत्यादि प्रमुख संस्थायें थी । इन राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाओं के स्नातको देश - सेवा के कार्य में प्रशंसनीय योगदान दिया ।
अनेक विद्यार्थियों ने अपनी पढ़ाई और वकील ने अपनी वकालत छोड़कर आन्दोलन में भाग लेना आरम्भ किया । गांधी जी ने अपने केसर - ए - हिन्द ' के पदक को वापस कर दिया । सेठ जमनालाल बजाज ने अपनी रायबहादुर ' के उपाधि तथा ' आनरेरी मजिस्ट्रेटी ' छोड़ दी । विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार में लोगों ने अपूर्व उत्साह दिखाया । स्थान - स्थान पर विदेशं वों की होली जलाई गई । शराब और विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर पिकेटिंग की गई । स्वदेश को लोकप्रियता प्राप्त हुई और हाथकरघा एवं हाथ बुनाई को प्रोत्साहन मिला । चरखा कातन राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन गया और चरखा राष्ट्रीय चिन्ह बन गया । |
सरकार की दमनकारी नीति - असहयोग आन्दोलन की प्रगति से सरकार अत्यधिव चिन्तित हुई और उसने आन्दोलन को कुचलने के लिए दमनात्मक उपायों का अवलम्बन लिया । सरकार ने ' राजद्रोह सभी अधिनियम ' का खुलकर प्रयोग किया तथा आन्दोलन के प्रमुख नेताओं को बन्दी बना लिया । अली - बन्धु , मोतीलाल नेहरु , चितरंजनदास , लाला लाजपत राय , सभा चन्द्र बोस आदि प्रमुख नेता बन्दी बना लिए गए । चौरी - चौरा काण्ड और असहयोग आन्दोलन का अन्त – जब असहयोग आन्दोलन अपनी पराकाष्ठा पर था , उस समय चौरी - चौरा की हिंसक घटना ने सम्पूर्ण आन्दोलन को ही बदल दिया ।
5 फरवरी , 1922 को चौरी - चौरा गांव ( उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में ) कांग्रेस की और से एक जुलूस निकाला गया । पुलिस ने जुलूस को रोकने का प्रयत्न किया जिससे सत्याग्रहियों और पुलिस में मुठभेड़ हो गई । इससे सत्याग्रहियों ने उत्तेजित होकर एक थानेदार और 21 सिपाहियों को थाने में खदेड़ दिया और आग लगा दी । वे सब आग से जल कर मर " य । इस घटना से अहिंसावादी गांधी जी को तीव्र आघात पहुंचा । उन्होंने 12 फरवरी , 1922 को रडोली में कांग्रेस कार्यसमिति की एक बैठक आमन्त्रित की जिसमें उनके द्वारा चौरी - चौरा घटना धार पर आन्दोलन स्थगित करने का प्रस्ताव किया गया था।
अत : महात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन के माध्यम से ब्रिटिश शासकों का हृदय - परिवर्तन करने का निश्चय कर लिया । गांधी जी की अहिंसा एवं सत्याग्रह में अटूट आस्था थी । वे चम्पारन , खेड़ा और अहमदाबाद में सत्याग्रह के सीमित प्रयोग कर चुके थे । 1920 में गांधी जी ने राष्ट्रीय स्तर पर असहयोग - आन्दोलन करने का निश्चय किया । असहयोग आन्दोलन के कारण ( 1 ) प्रथम महायुद्ध में ब्रिटेन का सहयोग – कांग्रेस और समस्त भारतवासियों ने प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों को तन - मन - धन से सहयोग दिया था क्योंकि उन्हें आशा थी कि युद्ध के पश्चात् उन्हें काफी हद तक राजनीतिक अधिकार प्रदान किए जायेंगे किन्तु युद्ध के बाद सुधारों की बात तो दूर रही वरन् भारतीयों का दमन करने के लिए कठोर व आतंकवादी कानून लगाये गये ।
परिणामस्वरूप सहयोग देने वाली जनता को असहयोग करने के लिए मजबूर होना पड़ा ।( 2 ) राष्ट्रवादियों का दमन युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार भारतीयों का सहयोग प्राप्त कर रही थी वरी पद के पश्चात् भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का हर प्रकार से दमन करने का प्रयास किया गया । सरकार ने प्रेस अधिनियम और राजद्रोह एक्ट पारित किये जिनका उद्देश्य राष्ट्रवादियों का दमन था । पंजाब व बंगाल में राष्ट्रवादियों पर भयंकर अत्याचार किए गए और उनके साथ अमानुषिक व्यवहार किया गया । ( 3 ) निरन्तर बिगड़ती आर्थिक स्थित महायुद्ध के दौरान ब्रिटेन की ओर से लड़ने के लिए जो सेना बाहर गयी थी?
उस पर किये गये करीब 150 करोड़ रुपये व्यय की राशि का भार भारत सरकार को उठाना पड़ा । परिणामस्वरूप भारत की आर्थिक स्थिति बहुत ही दुर्बल हो । गयी । आवश्यक वस्तुओं का बाजार में अभाव हो गया और उनके भाव एकदम ऊंचे चढ़ गये । पूँजीपतियों ने काला बाजारी करके करोड़ों - अरबों रुपये कमाये । सरकार ने साधारण जनता को महँगाई से राहत दिलवाने के लिए कार्यवाही करना तो दूर वरन टैक्स की संख्या में मात्रा में भारी वृद्धि कर जनता पर भारी आर्थिक बोझ डाल दिया जिससे उनकी कमर टूट गयी । पूँजीपति और सरकार दोनों जनता का आर्थिक शोषण करते रहे ।
| ( 4 ) प्राकृतिक विपदाएँ - 1917 में वर्षा न होने के कारण देश में भयंकर अकाल पड़ा । और प्लेग व इन्फ्लुएन्जा जैसी महामारियां फैतीं । भारत सरकार ने इन प्राकृतिक विपदाओं की रोकथाम के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए । इस उपेक्षापूर्ण नीति के कारण भारतीयों में रोष व असन्तोष की भावना उभरी । । | ( 5 ) अंग्रेजों की सैन्य भर्ती नीति - युद्ध के दौरान सेना में भारतीय सैनिकों की जबरदस्ती । प की गयी । गांवों में प्रत्येक परिवार से 2 - 3 व्यक्तियों की सेना में भर्ती अनिवार्य कर दी गयी । इससे जनता में असन्तोष जागृत हुआ । इसके विपरीत जब युद्ध समाप्त हो गया तो बड़ा संख्या में सैनिकों की छटनी कर दी गयी ।
बहुत से लोग बेरोजगार हो गए । इससे सरकार का संकीर्ण और स्वार्थी प्रवृत्ति जनता के समक्ष उजागर हुई और वह अंग्रेज सरकार के साथ असहयोग करने के लिए तैयार हो गयी । । ( 6 ) माप्टफोर्ड घोषणा से रािशा - भारतीयों को यह आशा थी कि युद्ध के पश्चात् ब्रिटिश सरकार उन्हें कुछ न कुछ मात्रा में राजनीतिक सुधार व अधिकार प्रदान कर माण्टफोडे घोषणा से भारतीय जनत , में निराशा व्याप्त हो गयी क्योंकि केन्द्रीय सरकार १२ भांति अनुत्तरदायी बनी रही और प्रान्तों में उत्तरदायी शासन की स्थापना नहीं की गयी ।
( 7 ) लिट एक्ट 1919 - दिसम्बर 1919 में विटिश सरकार ने भारतीय क्रा के आन्दोलन से सम्बन्धित आरिपूर्ण षड्यन्त्रों के कार्यकलापों की रिपोर्ट देने एव । की जाने वाली कार्यवाहिय र कानूनों की रूपरेखा बनाने के लिए जस्टिस रासदी किया ८ प्रतिक्रिय नेताओं जागृति । डॉ . किच गया । स पूर्णतः शा पूरा जुलून में जो भी को लूट सार्वजनिट अमृतसर शहर में 3 करने , एक की कोई = आयोजित एक ही थे गये ।
इस सभा की । निकलने । बरसाने के हजार लो गोला - बार अनुमति = को रिपोर्ट देने एवं उनके विरुद्ध जस्टिस रोलट की अध्यक्ष ५ किया गया और इसकी गया था कि भारत का वर्तमान गया । पंज कर दिया मुकदमा = गयी । लो भारतीयों थी । इस ( लए अप्यप्ति है । में एक समिति की नियुक्ति की । इस समिति का सम्पूर्ण भारत में विरोध किया । रिपोर्ट को अत्यन्त प्रतिक्रियावादी कहा गया क्योंकि इसमें कहा गया था कि फौजदारी कानून क्रान्तिकारियों की गतिविधियों का सामना करने व अतः दो नये कानुन बनाये जाने चाहिए ।
इस समिति की रिपोर्ट अप्रैल अरि इसके आधार पर 18 मार्च , 1919 को गया जो रौलट एक्ट के नाम से प्रसिद्ध है । इस एक्ट के अनुसार में आतंकवादी और अफ कि वे संदिग्ध क्रान्तिकारियों को बिना माकूल जाँच पड़ता दश जारी कर सकते थे । इस एक्ट की कांग्रेस और समस्या ८ अप्रैल 1918 में प्रकाशित हुई । ६ र अराध अधिनियम पारित के अनुसार मजिस्ट्रेटों को यह अधिक की ओर सरकार ने हेतु एक व डायर ने तीव्र भत्र्सना की और इसका विरोध किया गया( 8 ) जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड - एक ऐसा भीषण हत्याकांड जो अंग्रेज सरकार ने किया था , जिसका अन्यत्र उदाहरण दर्लभ है ।
पंजाब का गवर्नर माइकल ओ डायर अत्यन्त प्रतिक्रियावादी और भारतीयों से घृणा करने वाला व्यक्ति शा । सरकार ने गांधीजी सहित सभी । नेताओं के पंजाब प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया । तनाव व असन्तोष के बावजूद •पंजाब में जागृति बनी रही । 10 अप्रैल , 1919 को पंजाब के अत्यन्त लोकप्रिय नेताओं डॉ . सत्यपाल अरि डॉ . किचलू के अमृतसर से निष्कासन के आदेश जारी कर दिए गये और उन्हें नजरबन्द कर दिया गया । सरकार की इस कार्यवाही के विरोध में अमृतसर में एक विशाल जुलूस निकाला गया जो पूर्णतः शांत और व्यवस्थित था फिर भी एक स्थान पर पुलिस ने जुलूस पर गोली चला दी ।
इससे पूरा जुलूस भड़क उठा और जनता ने उत्तेजित होकर हत्या , आगजनी और लूटमार मचा दी । मार्ग में जो भी यूरोपियन स्त्री - पुरुष मिले उन पर हमला कर दिया गया । नेशनल बैंक व एलाइन्स बैंक को लूट लिया गया और उनके युरोपियन मनेजरों को मार डाला गया । टाऊन हाल व अन्य सार्वजनिक भवनों व सम्पत्ति को नष्ट किया गया और टेलीफोन के तार तोड़ दिये गये । सरकार ने अमृतसर का शासन सेना को सौंप दिया और जनरल डायर ने सारा काम सम्भाल लिया ।
सेना ने शहर में अन्धाधुन्ध गोलियां चलाई जिससे कई लोग मारे गये । 12 अप्रेल को सार्वजनिक सभा करने , एकत्र होने व जुलूस निकालने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया किन्तु इसकी सूचना पहुंचाने की कोई व्यवस्था नहीं की गयी । | 13 अप्रैल , 1919 को वैसाखी के दिन जलियांवाला बाग में सार्यकाल एक आम सभा आयोजित की गयी । जलियांवाला बाग हालांकि काफी लम्बा चौड़ा था किन्तु उसका प्रवेश मार्ग एक ही था और वह भी अधिक चौड़ा नहीं था । लगभग 20 हजार लोग इस सभा में एकत्रित हो । गये । इस सभा को होने से पहले ही रोकने का कोई प्रयास सरकार द्वारा नहीं किया गया ।
जब सभा की कार्यवाही आरम्भ हो गयी तो जनरल डायर 150 सैनिकों के साथ वहां आया और बाहर निकलने वाले मार्ग को रोक कर मोर्चा लगाकर बिना किसी पूर्व चेतावनी के भीड़ पर गोली बरसाने के आदेश दे दिए । बन्दूकों व मशीनगनों से हजारों गोलियां दागी गयी । करीब एक हजार लोग इस हत्याकांड में मारे गये । यह गोली वर्षा तभी रुकी जब सैनिकों के पास गोला - बारुद समाप्त हो गया । पूरी रात घायल व्यक्तियों को वहां से हटाने या ले जाने की । अनुमति नहीं दी गई । अमृतसर में इस हत्याकांड के पश्चात् सम्पूर्ण पंजाब में सैनिक शासन लागू कर दिया गया । पंजाब की जनता पर अंग्रेजों ने मनमाने अत्याचार किये । अमृतसर के नलों में पानी बन्द कर दिया गया और बिजली काट दी गयी । सैकड़ों लोगों को पकडकर सैनिक अदालतों में मुकदमा चलाया गया । जिनमें से 51 को फांसी और 46 को आजन्म कारावास की सजा दी गयी ।
लोगों पर भीषण अत्याचार किए गए , उन्हें गलियों व सड़कों पर पेट के बल चलाया गया । भारतीयों पर लाठी बरसाना , मारना - पीटनी , शारीरिक यंत्रणा देना अंग्रेजों के लिए मामूली बातें थी । इस भीषण हत्याकांड का सम्पूर्ण भारत पर विस्तृत और गहरा प्रभाव पड़ा । | ( 9 ) हन्टर कमटी की रिपोर्ट - एक अन्य महत्त्वपूर्ण घटना जिसने गांधीजी को असहयोग की ओर बढ़ाया वह थी हन्टर कमेटी और उसकी खोखली व पक्षपातपूर्ण रिपोर्ट । ब्रिटिश सरकार ने जलियांवाला बाग की घटना से भारतीयों में उत्पन्न रोग व विरोध के कारणों की जांच तु एक कमेटी की नियुक्ति की थी जिसके अध्यक्ष लाई हण्टर थे ।
इस कमेटी के समक्ष जनरल या ने बयान देते समय अपने कार्य के प्रति स्वयं की कोई त्रुटि महसूस नहीं की बल्कि स्वयं को यान्वित महसूस किया । इस कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया कि माइकल डायर दोषी नहीं है ।बल्कि कहा गया कि उसने नेक नीयत से उचित कार्यवाही की , हालांकि परिस्थितियों को समझने में उससे कुछ गलती हो गयी होगी । इण्डेम्निटी बिल ' पारित कर इन अधिकारियों को किसी भी प्रकार के दण्ड से बचा लिया गया । इस कमेटी की रिपोर्ट में एक प्रकार से हत्याकाण्ड की लीपा - पोती की गयी । यह कमेटी अंग्रेजों की बद - नीयति का स्पष्ट प्रमाण थी । | ( 10 ) खिलाफत की समस्या - टर्की का सुल्तान विश्व भर के मुसलमानों का धार्मिक नेता ( खलीफा ) माना जाता था । प्रथम विश्व युद्ध में टर्की ब्रिटेन के विरुद्ध जर्मनी की ओर से युद्ध कर रहा था ।
अतः भारतीय मुसलमानों ने मांग की कि वे ब्रिटिश सरकार की सहायता इस शर्त पर ही करेंगे कि युद्ध की समाप्ति के पश्चात् इंग्लैंड टर्की के प्रति प्रतिशोध की नीति नहीं अपनाएगा और उसके साम्राज्य को छिन्न - भिन्न नहीं होने देगा । ब्रिटिश प्रधानमन्त्री लायड जार्ज ने इस मांग को मान लिया ब्रिटिश प्रधानमंत्री के इस आश्वासन पर मुसलमानों ने युद्ध में अंग्रेजों की पूरी सहायता की किन्तु युद्ध समाप्ति के बाद 1920 में टर्की के साथ सीवर्स की सन्धि की गयी जिसमें उपर्युक्त आश्वासन की पूर्ति नहीं की गयी और टर्की साम्राज्य का विघटन कर दिया गया । टर्की में एक हाई कमिश्नर नियुक्त किया गया जिसे वास्तविक शासन की शक्ति दी गयी । सुल्तान केवल नाममात्र का शासक रह गया ।
खलीफा का पद सुल्तान से छीनकर मक्का के हाकिम शेख हसन को दे दिया गया , जो अमेज़ों का कृपा पात्र था । । विटेन के इस विश्वासघात के विरोध में भारतीय मुसलमानों ने खिलाफत आन्दोलन चलाया । इस आन्दोलन के समर्थकों की मांग थी कि टर्की के साम्राज्य का पुनर्निर्धारण किया जाए और मुस्लिमों के आध्यात्मिक नेता के रूप में खलीफा का पद बनाए रखा जाए । गांधीजी इस खिलाफत आन्दोलन के समर्थक थे और इसे हिन्दू - मुस्लिम एकता बढ़ाने के लिए स्वर्णिम अवसर मानते थे । 19 जनवरी , 1920 को डॉ . अन्सारी के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल वायसराय चेम्सफोर्ड से मिला लेकिन कोई फल नहीं निकला ।
मौलाना मोहम्मद अली के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल इंग्लैंड भी गया किन्तु उसे अपने उद्देश्य में कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई । शिष्टमण्डल निराश होकर भारत लौट आया । गांधीजी ने खिलाफत आंदोलन में मुस्लिमों का समर्थन किया । और ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन चलाने का निर्णय लिया । असहयोग आन्दोलन के उद्देश्य असहयोग आन्दोलन के उद्देश्य मुख्यतः दो थे ( 1 ) शान्तिमय एवं अहिंसक उपायों से स्वराज्य प्राप्त करना , ( 2 ) ब्रिटिश भारत की जो भी राजनीतिक , सामाजिक और आर्थिक संस्थाएँ हैं उन सब का बहिष्कार कर दिया जाए और इस प्रकार सरकार की मशीनरी को बिल्कुल ठप्प कर दिया जाए ।
असहयोग आन्दोलन का कार्यक्रम असहयोग आंदोलन का कार्यक्रम निम्न प्रकार से निश्चित किया गया ( 1 ) सरकारी उपाधियों और अवैतनिक पदों का त्याग किया जाये । ( 2 ) स्थानीय संस्थाओं के नामजद सदस्य त्यागपत्र दे दें । ( 3 ) सरकारी दरबारों , उत्सवों और भोजों में शामिल न हुआ जाए । ( 4 ) सरकारी और अर्द्ध - सरकारी स्कूलों एवं कॉलेजों का बहिष्कार किया जाये । ( 5 ) सरकारी न्यायालय का धीरे धीरे बहिष्कार किया जाए । ( 6 ) विदेशी माल का बहिष्कार किया जाये तथा स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग किया जा ( 7 ) सैनिकों , क्लर्को तथा मजदूरों द्वारा मेसोपोटामिया के लिये अपनी सेवायें न दी जाये।( 8 ) 1919 के अधिनियम के अन्तर्गत होने वाले चुनाव का बहिष्कार किया जाए ।
इन सब कार्यक्रमों का उद्देश्य सरकारी नौकरियों , कौंसिलों , न्यायालयों , स्कूलों तथ कॉलेजों का बहिष्कार था । इसके अतिरिक्त कार्यक्रम का सकारात्मक पक्ष भी था , जिनमें निमः । बातें मुख्य थी ' ( 1 ) राष्ट्रीय स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना , ( 2 ) पारस्परिक विवाद तय करने के लिए जनता की पंचायतों की स्थापना की जाये , ( 3 ) बड़े पैमाने पर स्वदेशी का प्रचार , ( 4 ) हाथकरघा एवं बुनाई उद्योग का जीर्णोद्धार , ( 5 ) हिन्दू मुस्लिम एकता को सुदृढ़ करना , तथा | ( 6 ) अस्पृश्यता का अन्त । । असहयोग आन्दोलन की प्रगति कलकत्ता अधिवेशन के पश्चात् गांधी जी ने सारे भारत का दौरा कर असहयो आन्दोलन का प्रचार किया ।
गांधी जी की अपील पर स्थान स्थान पर हजारों विद्यार्थियों द्वार सरकारी स्कूलों एवं कॉलेजों का बहिष्कार किया गया । अनेक राष्ट्रीय शिक्षण - संस्थाओं के स्थापना की गई , जिनमें काशी विद्यापीठ , गुजरात विद्यापीठ , बिहार विद्यापीठ , तिलक महारा । विद्यापीठ , बंगाल नेशनल विद्यापीठ , मुस्लिम विद्यापीठ , अलीगढ़ - नेशनल कॉलेज , लाहौर । जामिया मिलिया , दिल्ली इत्यादि प्रमुख संस्थायें थी । इन राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाओं के स्नातको देश - सेवा के कार्य में प्रशंसनीय योगदान दिया ।
अनेक विद्यार्थियों ने अपनी पढ़ाई और वकील ने अपनी वकालत छोड़कर आन्दोलन में भाग लेना आरम्भ किया । गांधी जी ने अपने केसर - ए - हिन्द ' के पदक को वापस कर दिया । सेठ जमनालाल बजाज ने अपनी रायबहादुर ' के उपाधि तथा ' आनरेरी मजिस्ट्रेटी ' छोड़ दी । विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार में लोगों ने अपूर्व उत्साह दिखाया । स्थान - स्थान पर विदेशं वों की होली जलाई गई । शराब और विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर पिकेटिंग की गई । स्वदेश को लोकप्रियता प्राप्त हुई और हाथकरघा एवं हाथ बुनाई को प्रोत्साहन मिला । चरखा कातन राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन गया और चरखा राष्ट्रीय चिन्ह बन गया । |
सरकार की दमनकारी नीति - असहयोग आन्दोलन की प्रगति से सरकार अत्यधिव चिन्तित हुई और उसने आन्दोलन को कुचलने के लिए दमनात्मक उपायों का अवलम्बन लिया । सरकार ने ' राजद्रोह सभी अधिनियम ' का खुलकर प्रयोग किया तथा आन्दोलन के प्रमुख नेताओं को बन्दी बना लिया । अली - बन्धु , मोतीलाल नेहरु , चितरंजनदास , लाला लाजपत राय , सभा चन्द्र बोस आदि प्रमुख नेता बन्दी बना लिए गए । चौरी - चौरा काण्ड और असहयोग आन्दोलन का अन्त – जब असहयोग आन्दोलन अपनी पराकाष्ठा पर था , उस समय चौरी - चौरा की हिंसक घटना ने सम्पूर्ण आन्दोलन को ही बदल दिया ।
5 फरवरी , 1922 को चौरी - चौरा गांव ( उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में ) कांग्रेस की और से एक जुलूस निकाला गया । पुलिस ने जुलूस को रोकने का प्रयत्न किया जिससे सत्याग्रहियों और पुलिस में मुठभेड़ हो गई । इससे सत्याग्रहियों ने उत्तेजित होकर एक थानेदार और 21 सिपाहियों को थाने में खदेड़ दिया और आग लगा दी । वे सब आग से जल कर मर " य । इस घटना से अहिंसावादी गांधी जी को तीव्र आघात पहुंचा । उन्होंने 12 फरवरी , 1922 को रडोली में कांग्रेस कार्यसमिति की एक बैठक आमन्त्रित की जिसमें उनके द्वारा चौरी - चौरा घटना धार पर आन्दोलन स्थगित करने का प्रस्ताव किया गया था।
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home