Sunday, June 30, 2019

सविनय अवज्ञा आंदोलन

1 . साइमन कमीशन - 1927 में ब्रिटिश सरकार ने सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक कमीशन का गठन किया तथा भारत की प्रशासनिक व्यवस्था की जाँच के लिए उसे भारत भेजा । इस कमीशन में सात सदस्य थे तथा वे सब अंग्रेज़ थे । साइमन कमीशन को भारत इसलिए भेजा गया था कि वह यह पता लगाएं कि भारत में उत्तरदायी शासन स्थापित करना कहाँ तक उचित है ।

 तथा भारतवासी उत्तरदायी शासन को चलाने की योग्यता तथा क्षमता रखते हैं या नहीं । वास्तव में ये दोनों स्थितियाँ भारतवासियों एवं राष्ट्रीय नेताओं के लिए अपमानजनक थी । अतः कांग्रेस ने साइमन कमीशन का विरोध करने का निश्चय कर लिया । 3 फरवरी , 1928 को साइमन कमीशन बम्बई पहुंचा जहाँ हड़ताल से उसका स्वागत किया गया । स्थान - स्थान पर काले झण्डों , ' साइमन कमीशन वापिस जाओ ' के नारों से साइमन कमीशन का विरोध किया गया ।

 ब्रिटिश सरकार ने आन्दोलनकारियों के विरुद्ध दमनकारी नीति अपनाई । लाहौर में लाला लाजपतराय के नेतृत्व में साइमन कमीशन के विरोध में एक जुलूस निकाला गया । पुलिस द्वारा लाला लाजपतराय पर लाठियों की वर्षा की गई जिससे वे बुरी तरह से घायल हो गये तथा 17 नवम्बर , 1928 को वीरगति को प्राप्त हुए । लखनऊ में पुलिस ने पं . जवाहरलाल नेहरू तथा गोविन्द वल्लभ पन्त पर भी लाठियाँ बरसाईं । बंगाल में सुभाषचन्द्र बोस के नेतृत्व में साइमन कमीशन के विरुद्ध जुलूस निकाला गया ।

 अंग्रेजों की दमनकारी नीति से गाँधीजी को प्रबल आघात पहुँचा । नहीं इयोग डुकर राष्ट्रीय और और - और इसने कुछ | 2 . साइमन कमीशन की रिपोर्ट से निराशा - 1930 में साइमन कमीशन ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की । इस रिपोर्ट से भारतवासियों को बड़ी निराशा हुई । रिपोर्ट में भारतीयों कीऔपनिवेशिक स्वराज्य की माँग की पूर्ण उपेक्षा की गई । इसी प्रकार केन्द्र में उत्तरदायी सरकार की स्थापना की मांग भी स्वीकार नहीं की गई । अतः गाँधीजी ने साइमन कमीशन की रिपोर्ट का विरोध किया और अंग्रेजों के विरुद्ध सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने का निश्चय कर लिया ।

 3 . नेहरू रिपोर्ट को अस्वीकार करना - भारत सचिव लाई बर्किन हैड ने भारतीयों को चुनौती दी कि वे एक ऐसा संविधान तैयार करें जो भारत के सभी राजनीतिक पक्षों को स्वीकार्य हो । कांग्रेस ने इस चुनौती को वीकार कर लिया तथा भारत के संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए पं . मोतीलाल नेहरू । अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया । इस समिति ने 10 अगस्त , 1928 को एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जो ' नेहरू रिपोर्ट ' के नाम से प्रसिद्ध है । कांग्रेस ने नेहरू रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया परन्तु ब्रिटिश सरकार ने इस रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया ।

 मुस्लिम लीग ने भी नेहरू रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया । इससे गांधीजी को प्रबल आघात पहुंचा । कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार को चेतावनी दी कि यदि सरकार 31 दिसम्बर , 1929 तक नेहरू रिपोर्ट स्वीकार नहीं करेगी , तो वह अहिंसात्मक सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू करेगी । । ' 4 . पूर्ण स्वराज्य की माँग - दिसम्बर , 1929 में लाहौर में पं . जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस का अधिवेशन शुरू हुआ । 31 दिसम्बर 1929 को अधिवेशन में पूर्ण स्वतन्त्रता का प्रस्ताव पास किया गया । इस अधिवेशन में कांग्रेस ने प्रतिवर्ष 26 जनवरी को स्वतन्त्रता दिवस मनाने का निश्चय भी किया ।

अतः 26 जनवरी , 1930 को सम्पूर्ण भारत में स्वतन्त्रता दिवस बड़े उत्साह के साथ मनाया गया । इस अधिवेशन ने कांग्रेस को उचित अवसर । पर सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने का अधिकार दे दिया । । 5 . देश में अशान्ति एवं अराजकता - इस समय देश की आर्थिक स्थिति बड़ी शोचनीय थी । देश में महंगाई , बेरोजगारी तथा गरीबी बढ़ रही थी । मजदूरों में बढ़ती हुई महंगाई के कारण तीव्र असन्तोष था । उन्होंने भी ब्रिटिश सरकार का विरोध करना शुरू कर दिया । ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी नीति अपनाते हुए अनेक मजदूर नेताओं को गिरफ्तार कर लिया ।

 इस समय क्रान्तिकारियों ने भी अपनी गतिविधियां तेज कर दी थी । 1929 में सरदार भगतसिंह तथा बटुकेश्वरदत्त ने दिल्ली में केन्द्रीय विधानसभा में बम फेंककर सनसनी फैला दी । गाँधीजी इन हिंसात्मक घटनाओं से बड़े चिन्तित हुए । उन्होंने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध अहिंसात्मक सविनय अवज्ञा आन्दोलन को प्रारम्भ करने का निश्चय कर लिया । नमक = की हो वस्त्रों के करना , , कानून गया । शराब बन्दी = पटेल , सीमान्ट बढ़ - च कुचल बरसाई पर ब 6 . गाँधीजी की माँगों को अस्वीकार करना - लाहौर अधिवेशन के बाद गाँधीजी ने भारत के वायसराय लार्ड इरविन के सामने 11 माँगे प्रस्तुत की और चेतावनी दी कि यदि उनकी मो ] स्वीकार नहीं की गई , तो वे सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ कर देंगे ।

 गाँधीजी की माँगे निम्नलिखित थीं - ( 1 ) पूर्ण नशाबन्दी हो । ( 2 ) मुद्रा विनिमय में एक रुपया एक शिलिाग चार पैंस के बराबर माना जाए । ( 3 ) नमक कर समाप्त किया जाए । ( 4 ) मालगुजारी आधी कर दी जाए । ( 5 ) प्रशासनिक खर्चे में कमी करने के लिए बड़े अधिकारियों के वेतन आधे या उससे कम कर दिए जाएँ । ( 6 ) सैनिक व्यय में कमी की जाए उसे शुरू में आधा कर दिया जाए । ( 7 ) तटीय व्यापार संरक्षण कानून पास किया जाए । ( 8 ) विदेशी वस्त्रों पर तट - कर लगाया ज उद्योगों का संरक्षण हो । ( ) हत्या या हत्या की चेष्टा में दण्डित बन्टियों को राजनीतिक बन्दियों को रिहा किया जाए । ( 10 ) गुप्तचर पुलिस को भंग कर कर लगाया जाए ताकि देशी आत्मरक्षा के लिए बन्दूक आदि हथियारों के लाइसेन्स दिए जाएँ । सरकार ने गांधीजी की मांगों पर कोई ध्यान नहीं दिया । लार्ड इरविन ने गाँधीजी का उत्तर भेजा , वह बड़ा असन्तोषजनक था ।

 इस पर गांधीजी को धाजी को बड़ा दुख हुआ और उन्होंनेकहा , " मैने घुटने टेककर रोटी मॉगी थी , परन्तु मुझे मिला पत्र । ब्रिटिश शासन केवल शक्ति पहचानता है और इसी कारण वायसराय के उत्तर पर मुझे आश्चर्य नहीं हुआ । हमारे राष्ट्र के भाग्य में जेल की शान्ति ही एकमात्र शान्ति है । समस्त भारत एक विशाल कारागृह है । मैं अंग्रेजों के कानूनों को मानने से इन्कार करता हैं । " सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रारम्भ | 12 मार्च , 1930 को गांधीजी ने अपने 79 कार्यकत्ताओं के साथ साबरमती आश्रम से डाण्डी नामक स्थान की ओर प्रस्थान किया ।

 उन्होंने लगभग 200 मील की यात्रा पैदल चल कर 24 दिन में तय की । गांधीजी 5 अप्रैल , 1930 को डण्डी पहुँचे । 6 अप्रैल , 1930 को उन्होंने डाण्डी पहुंच कर स्वयं नमक तैयार करके नमक - कानून को तोड़ा तथा सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू किया । । सविनय अवज्ञा आन्दोलन का कार्यक्रम सविनय अवज्ञा आन्दोलन कार्यक्रम के अन्तर्गत निम्नलिखित बातें सम्मिलित थीं — ( 1 ) नमक बनाकर नमक - कानून को तोड़ना . ( 2 ) विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना , विदेशी वस्त्र की होली जलाना , स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करना , ( 3 ) महिलाओं द्वारा शराब तथा विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना देना , ( 4 ) विद्यार्थियों द्वारा सरकारी स्कूलों तथा कॉलेजों का बहिष्कार करना , ( 5 ) सरकारी कर्मचारियों को अपनी नौकरियों से त्याग - पत्र देना , ( 6 ) कर - बन्दी । सविनय अवज्ञा आन्दोलन की प्रगति । शीघ्र ही सविनय अवज्ञा आन्दोलन सम्पूर्ण देश में फैल गया ।

 अनेक स्थानों पर नमक कानून को तोड़ा गया । विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई तथा शराब की दुकानों पर धरना दिया गया । इस आन्दोलन में स्त्रियों ने भी उत्साहपूर्वक भाग लिया । केवल दिल्ली में ही 1600 स्त्रियां शराब की दुकानों पर धरना देने के अपराध में गिरफ्तार की गई । 5 मई , 1930 को गांधीजी को बन्दी बनाकर यरवदा जेल में भेज दिया गया । इसके अतिरिक्त जवाहर लाल नेहरू , सरदार पटेल , सुभाषचन्द्र बोस आदि अनेक नेताओं को भी गिरफ्तार कर लिया गया ।

 इस आन्दोलन में सीमान्त गांधी खान अब्दुल गफ्फार खां तथा उनके अनुयायी ‘ खुदाई खिदमतगारों ने भी । बढ़ - चढ़कर भाग लिया । ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीति – ब्रिटिश सरकार ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को कुचलने के लिए दमनकारी नीति अपनाई । अनेक स्थानों पर आन्दोलनकारियों पर लाठियां बरसाई गई तथा गोलियां चलाई गई । 21 मई , 1930 को - घारासना में 2500 निहत्थे सत्याग्रहियों पर बर्बरतापूर्वक लाठियां बरसाई गई जिससे अनेक सत्याग्रही घायल हो गए । महिलाओं पर भी अमानवीय अत्याचार किये गए । कांग्रेस को अवैध घोषित कर दिया गया तथा समाचार - पत्रों पर कठोर प्रतिबन्ध लगा दिए गए । आन्दोलन के दौरान एक वर्ष में लगभग 90 हजार भारतीयों को गिरफ्तार किया गया । बम्बई , कलकत्ता , रत्नागिरी , पटना आदि अनेक स्थानों पर सत्याग्रहियों को लाठियों से पीटा गया परन्तु सत्याग्रही विचलित नहीं हुए तथा शान्तिपूर्वक आन्दोलन करते रहे । और सरकार का विरोध करते रहे ।

| प्रथम गोलमेज सम्मेलन - 12 नवम्बर , 1930 को लन्दन में प्रथम गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया । इसमें कांग्रेस का कोई भी प्रतिनिधि सम्मिलित नहीं हुआ । इस सम्मेलन | साम्प्रदायिक समस्या पर कोई समझौता नहीं हो सका । अन्त में 16 जनवरी , 1931 को यह धीजी ने = उनकी की माँगें । नग चार कर दी मसे कम १ तटीय के देशी प सभी । ( 11 ) गाँधीजी उन्होंने सम्मेलन स्थगित कर दिया गया ।गाँधी - इरविन समझौता - 5 मई , 1931 को गांधीजी तथा वायसराय लार्ड इरविन के बीच समझौता हो गया , जो गाँधी - इरविन समझौते के नाम से प्रसिद्ध है । इस समझौते की प्रमुख शर्ते निम्नलिखित थीं | ( 1 ) राजनीतिक बन्दियों को रिहा कर दिया जायेगा ।

केवल उन्हीं लोगों को ही रिहा नहीं किया जायेगा जिनके विरुद्ध हिंसात्मक अपराध सिद्ध हो चुके हैं । ( 2 ) सरकार सभी अध्यादेश तथा चालु मुकदमों को वापिस ले लेगी । ( 3 ) आन्दोलन के दौरान जब्त की गई सम्पत्ति उनके स्वामियों को लौटा दी जायेगी । | ( 4 ) सरकार ऐसे लोगों को बन्दी नहीं बनायेगी जो शराब , अफीम तथा विदेशी वस्त्रों को दुकानों पर शान्तिपूर्वक धरना देंगे । ( 5 ) सरकार समुद्र के निकटवर्ती प्रदेशों में बिना नमक - कर दिए नमक बनाने की आज्ञा अंग्रेजी सन लिए विवः बहिष्कार । को बड़ा प्र दे देगी । था । " विदे ( 6 ) जिन सरकारी कर्मचारियों ने आन्दोलन के दौरान नौकरियों से त्याग - पत्र दे दिये थे . उन्हें नौकरियों में वापिस लेने के लिए सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जायेगा ।

 ( 7 ) कांग्रेस अपने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को स्थगित कर देगी । ( 8 ) कांग्रेस पुलिस द्वारा की गई ज्यादतिर्यो के लिए निष्पक्ष जांच की माँग नहीं करेगी । ( 9 ) कांग्रेस द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेगी । द्वितीय गोलमेज सम्मेलन - 7 सितम्बर , 1931 को लन्दन में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन आयोजित किया गया । इस सम्मेलन में गांधीजी ने कांग्रेस के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया । गांधीजी ने पूर्ण स्वराज्य की मांग की जिस पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया ।

 सरकार विभिन्न वर्गों में फूट डालना चाहती थी तथा हरिजनों को हिन्दुओं से अलग करना चाहती थी परन्तु गाँधीजी इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे । द्वितीय गोलमेज सम्मेलन 1 दिसम्बर , 1931 को समाप्त हो गया और गांधीजी खाली हाथ लौट आए । । सविनय अवज्ञा आन्दोलन को पुनः शुरू करना - गाँधीजी ने भारत लौट कर पुनः सविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू कर दिया । प्रिटिश सरकार ने दमनकारी नीति अपनाई तथा गांधीजी , सरदार पटेल आदि अनेक नेताओं को गिरफ्तार करके जेल में बन्द कर दिया ।

अनेक स्थानों पर सत्याग्रहियों पर लाठियां बरसाई गई तथा समाचार - पत्रों पर कठोर प्रतिबन्य लगा दिए गए । 1932 के अन्त तक लगभग 1 , 20 , 000 लोगों को गिरफ्तार किया गया । अन्त में 7 अप्रेल , 1934 को गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को समाप्त कर दिया । | सविनय अवज्ञा आन्दोलन का महत्त्व तथा उपलब्धियाँ पारत के राष्ट्रीय आन्दोलन में सविनय अवज्ञा आन्दोलन का महत्त्वपूर्ण स्थान है ।

 इसकी प्रमुख उपलब्धियां निम्नलिखित थीं ( 1 ) राष्ट्रीय आन्दोलन को व्यापक बनाना सविनय अवज्ञा आन्दोलन ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन की गतिविधियों को आगे बढ़ाया तथा इस आन्दोलन को व्यापक बनाया । ( 2 ) अहिंसात्मक आन्दोलन की सफलता - सत्यापहियों ने गांधीजी के निर्देशों का पालन करते हुए अहिंसात्मक आन्दोलन द्वारा अंग्रेजों का विरोध किया । निहत्थे सत्याग्रहियों पर था । प्रयोग करने के कारण अंग्रेजों की कट आलोचना की गई । इससे जनता में अंग्रेजों के विरु ५ । की भावना उत्पन्न हुई । ( 3 ) साहस , निर्भीकता एवं नवीन उत्साह का संचार - इस आन्दोलन ने देशवा साहस , देशभक्ति , निर्भीकता , त्याग तथा बलिदान की भावनाओं का प्रसार किया । इससे सफलता दुर्व्यवहार से भारत रहे फासि घुसी तो न देकर अंमे कोई भी मजबूर हो किया ।

 ( अर्वात् । पारित हो चाहिए । में एक ३ ब्रिटिश । आवश्य नाजीवाद निश्चित गांधीजी मरो ' हम् आन्दोलन ने देशवासियों में किया । इससे लोगों मेंनवीन उत्साह का संचार हुआ । उन्होंने मातृभूमि को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराने के लिए हँसते - हँसते जेलों को भरना शुरू कर दिया । | ( 4 ) स्त्रियों में जागृति - इस आन्दोलन ने स्त्रियों में भी जागृति उत्पन्न की । इस आन्दोलन में हजारों स्त्रियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और शराब की दुकानों तथा विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना दिया । | ( 5 ) संवैधानिक सुधार सविनय अवज्ञा आन्दोलन की बढ़ती हुई लोकरि यता से अंग्रेजी सरकार बड़ी चिन्तित हुई और उसे संवैधानिक सुधारों के लिए आवश्यक कदम उठाने के लिए विवश होना पड़ा और 1935 में भारत सरकार अधिनियम पास किया गया । ( 6 ) स्वदेशी को प्रोत्साहन – सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारण विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया तथा स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग पर बल दिया गया । इससे कुटीर उद्योगों को बड़ा प्रोत्साहन मिला ।

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